विट्ठल विट्ठल की धुन से सजी देशज की अंतिम शाम


 

- देशज में महाराष्ट्र के नंदेश उमप ने मराठी गीतों से सजाई शाम

 


लखनऊ 23 नवम्बर। शनिवार की सुबह महाराष्ट्र में जहां चुनावी हलचल लेकर आई तो वहीं दूसरी ओर अवध की शाम भी मराठी रंग का चोला ओढ़े आई। सोनचिरैया फाउंडेशन द्वारा गोमतीनगर के लोहिया पार्क में आयोजित लोकसंस्कृति को समर्पित उत्सव देशज की अंतिम शाम को सजाने महाराष्ट्र के लोककलाकार नंदेश उमप उपस्थित रहे। बाईपास सर्जरी के बाद 5 महीने तक प्रस्तुतियों को विराम देने के बाद उन्होंने पहली प्रस्तुति लखनऊ में दी। कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के सलाहकार अवनीश अवस्थी और संस्कृति और पर्यटन विभाग के प्रमुख सचिव मुकेश मेश्राम उपस्थित रहे।

प्रस्तुति की शुरुआत प्रयागराज आकाशवाणी के कलाकारों द्वारा लोक गायिका संगीता के प्रतिनिधित्व में 18 महिलाओं के गायन से हुआ। इन महिलाओं ने प्रयागराज में कुम्भ के लिए आमंत्रण  देते हुए पहला गीत अवधी भाषा में 'हम माघ महिनवा में गंगा नहाइब' प्रस्तुत किया। इसके बाद महिलाओं ने भोजपुरी लोकगीत 'प्रयागराज की पावन धरती पर लागल भारी भीड़, चलो सब गंगा जमुना तीर' महाकुम्भ और प्रयाग के महत्त्व को बताया। इस प्रस्तुति के अंत में लोकगायिका पद्मश्री मालिनी अवस्थी ने भी सुर से सुर मिलाते हुए सुन्दर नृत्य प्रस्तुत किया।

इस प्रस्तुति के बाद हरियाणा के कलाकारो ने मनोज झाला के निर्देशन में घूमर और फाग नृत्य प्रस्तुत किया। घूमर में जहां कलाकारों ने 'मेरा दामन सिमा दे ओ नंदी के बीरा' पर प्रस्तुति दी तो फाग में 'कोठे चढ़ ललकारूं दिखे जो मेरा दामण' पर नृत्य कर हरियाणा के कृषक समाज की फसल काटने के बाद ख़ुशी को व्यक्त किया।

अब बारी आई हाथरस शैली की नौटंकी डाकू सुल्ताना की। इस को पद्मश्री पं. रामदयाल शर्मा के निर्देशन में प्रस्तुत किया गया। इस दौरान सुल्ताना डाकू के विषय में जब मालिनी अवस्थी ने अपने पति अवनीश अवस्थी से पूछा तो अवनीश अवस्थी ने कहा कि पहले आप डाकुओं के नाम सुनते थे पर अब आपको सुनाई देता है क्या...? इस पर मालिनी अवस्थी ने कहा कि अफसर अपनी अफसरी करना नहीं भूलता है। इस प्रस्तुति में बिजनौर के डाकू सुल्तान की कहानी दिखाई गई जो अंग्रेजो के खिलाफ था और लूट के पैसो से गरीबों की मदद करता है। उसे अंग्रेज पकड़ने की कोशिश करते रहते है पर पकड़ नहीं पाते। अंत में उसे वो गरीब डाकिया पकड़वा देता है जिसकी उसने कभी मदद की थी। इसके माध्यम से संदेश दिया गया कि असली डकैत सुल्ताना नहीं बल्कि वो ताकते हैं जो भारत को बांट कर लूटना चाहती हैं। नौटंकी में मुख्य भूमिका रुद्राणी, शशांक, मनीष और श्रीया ने निभाई।

सुदूर पूर्वोत्तर में स्थित असम के कलाकारों ने भाओना नृत्य प्रस्तुत किया। इसी क्रम में बुंदेलखंड के युद्धकला को प्रदर्शित करने वाले लोकनृत्य पाइडंडा की प्रस्तुति रमेश पाल के निर्देशन में 51 बच्चों ने दी। दिवाली के समय प्रस्तुत किये जाने वाले इस नृत्य में मार्शल आर्ट और कुश्ती का अनोखा संगम देखने को मिला। इस प्रस्तुति के बाद संस्कृति विभाग के प्रमुख सचिव मुकेश मेश्राम ने लोकसंस्कृति को मंच देने सोनचिरैया संस्था जो प्रयास कर रही है वो सराहनीय है। उन्होंने कहा कि सरकार विलुप्त होती संस्कृति के संरक्षण के लिए 5 लाख राशि दी जाती है। नौटंकी विधा के संरक्षण के लिए भी यह राशि इस संस्था को जल्द स्वीकृत की जायेगी।

शाम के मुख्य आकर्षण रहे प्रख्यात मराठी लोक गायक नंदेश उमप। उन्होंने अपनी गायकी की शुरुआत गौरंग से की। उसमें उन्होंने कान्हा और गोपियों के बीच छेड़छाड़ को 'सुन सुन माझी वात रे कान्हा' गीत के ज़रिये सुनाया। इसके बाद उन्होंने लखनऊ पर स्वरचित रचना सुनाई। उसके बोल थे – “तहजीब की परिभाषा है लखनऊ संस्कृति की आशा है लखनऊ, भारत में पहचाना जाता हमरा खिलखिलाता लखनऊ, संगीत नृत्य की परंपरा को दर्शाता है लखनऊ, ठुमरी दादरी टप्पा कजरी इससे है पहचान हमारी, कण कण में मुस्कुराता है लखनऊ”। इसी क्रम में उन्होंने कहा कि “दुनिया में जानी मानी हैं वो लोकगीतों की रानी हैं, जो सबके दिल में बसती है वो मालिनी अवस्थी है। गायकी के सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने अभंग प्रस्तुत किया। इसमें उन्होंने विठ्ठल भक्ति गीत 'कानणा राजा पंढरी चा' सुनाया जिसे उनके साथ हर लखनऊवासी ने गुनगुनाया। कार्यक्रम में उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी के निदेशक शोभित नाहर, उत्तर प्रदेश लोककला एवं जनजाति संस्थान के निदेशक अतुल द्विवेदी, क्षेत्रीय ललित कला अकादमी के क्षेत्रीय सचिव देवेंद्र त्रिपाठी सहित अन्य की गौरवमयी उपस्थिति रही।