लखनऊ। पारस बेला न्यास और भारत बुक सेन्टर के संयुक्त तत्वावधान में उ०प्र० हिन्दी संस्थान के मिराला सभागार में आयोजित कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए पूर्व मुख्य सचिव उत्तर प्रदेश शासन एवं । डा. सूर्यप्रसाद दीक्षित के शोध समीक्षा परक लेखन पर गम्भीरता पूर्व कार्यकारी अध्यक्ष डा. शम्भुनाथ से प्रकाश डाला। विमोचन किए जा रहे ग्रन्थ की उपयोगिता को रेखांकित किया। डा. शम्भूनाथ जी हिन्दी के प्रसिद्ध आलोचक प्रा० सूर्यप्रसाद दीक्षित के व्यक्तित्व पर आधारित ग्रन्थ साहित्य सूरि आचार्य सूर्यप्रसाद दीक्षित के विमोचन समारोह मे अपने उदगार व्यक्त कर रहे थे। इस ग्रन्थ का सम्पादन हिन्दी के चर्चित साहित्यकार और प्रशासनिक अधिकारी डा. अनिल कुमार पाठक ने किया है।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि पूर्व विधानसभा अध्यक्ष श्री हृदय नारायण दीक्षित ने कहा कि भारतीय सांस्कृतिक परम्परा से जुड़ते हुए ऐसे ग्रन्थों की बहुत आवश्यकता है। आचार्य दीक्षित का कृतित्व हिन्दी साहित्य एवं भारतीय संस्कृति का अनुपम उदाहरण है।
कार्यक्रम में डा. सूर्यप्रसाद दीक्षित की सद्यः प्रकाशित दो कृतियों भारतीय भक्ति आन्दोलन, स्वातंत्र्य सेनानी साहित्यकार तथा साहित्य का अध्यात्मशास्त्र का भी विमोचन किया गया।
कार्यक्रम में बोलते हुए डा. अनिल कुमार पाठक ने कहा कि आज के समय में भारतीय संस्कृति के मानवीय पक्ष पर लेखन की बहुत आवश्यकता है। ऐसा सत्साहित्य रचा जाना चाहिए जो समाज के लिए प्रेरक हो और परिवारों के अन्दर आदर्श भाव स्थापित कर सके ।
कार्यक्रम में अन्य वक्ताओं ने आचार्य सूर्यप्रसाद दीक्षित के लोकवांग्मय, अवधी कायशास्त्रीय चिन्तन, विश्व हिन्दी प्रयोजनमूलक हिन्दी, पत्रकारिता आदि पक्षों पर अपने-अपने विचार व्यक्त किए। संगोष्ठी में दूर-दूर जनपदों और लखनऊ नगर के वरिष्ठ साहित्यकार उपस्थित थे।
कार्यक्रम में आगन्तुकों का आभार व्यक्त करते हुए प्रो. सूर्यप्रसाद दीक्षित ने कहा कि हिन्दी के ज्वलंत प्रश्नों पर विचार करने की आवश्यकता है जैसे कि हिन्दी का अपना काव्य शास्त्र बन सकता है। हिन्दी साहित्य के इतिहास के पुनर्लेखन की आवश्यकता है। नई टेक्नालाजी के साथ हिन्दी की समेकित या सामूहिक समीक्षा सम्भव है। शोध समीक्षा कैसे हो इन विषयों पर गम्भीर प्रश्न और निराकरण प्रस्तुत किए।
कार्यक्रम में हिन्दी सेवी सुशील कुमार अवस्थी ने विमोचन किए गए ग्रन्थ की विस्तृत समीक्षा की तथा आचार्य दीक्षित का संक्षिप्त परिचय दिया। कार्यक्रम का संचालन लविवि के हिन्दी विभाग के प्रोफेसर पवन अग्रवाल ने किया
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