दौड़ रहा डगर -डगर।
इमारत और शहर -शहर
गली -गली,नगर -नगर।
जाने कौन घोल गया,
हवाओं ही में ज़हर।
सब हैं डरे -डरे
कहीं - कहीं घाव हरे।
मातम है पसरा हुआ
दर्द है बिखरा हुआ।
आदमी है सहमा हुआ
दिशाएँ सारी मौन हैं
आया फिर कस्साब कौन है?
सीमाएँ सारी बंद हैं
सोच हुई कुंद है।
रिश्ते तार -तार हैं
हर शख़्स ही बेज़ार है।
दवाएँ हैं बेकार -सी
ज़िन्दगी हुई लाचार -सी।
मौत का बाज़ार सजा
आदमी जीता हो जैसे बेजा।
आदमी से आदमी दूर चले
जाने कौन मौत का हरकारा बने?
मौत का हरकारा
दौड़ रहा डगर- डगर।
गली- गली,नगर -नगर
घोल गया कौन ज़हर?
*मृदुला मिश्रानाम--मृदुला मिश्रा।
औरंगाबाद बिहार।
शिक्षा--एम.ए। हिंदी-उपन्यास।
हजारीबाग संत कोलम्बा। राँची यूनिवर्सिटी।