कोरोना -- 19


पास बैठना अब दुस्बार हो गया,
कोरोना काकठिन प्रहार हो गया।
आदमी इतना पत्थर दिल नथा,
आज कितना लाचार हो गया।
हाथ मिलाते थे, बड़े उत्साह से,
अब दूर से ही दीदार,हो गया।
ऐसी महामारी,देखी सुनी न थी,
विश्व में लाखों आजार,हो गया।
हर बस्तु यूज एण्ड थ्रो पहलेभी ,
वही समय फिर साकार होगया।
अजीबथा भेद भाव पूर्णआचरण।
बदले परिवेश में, सदाचार होगया,
सरकारी फरमान जारी, घर में रहें,
सतत हाथ धोना, उपचार हो गया,
मास्क पहनें,डिस्टेंन्सिग भी जरूरी
प्रेम प्यार निरूख व्यवहार होगया।
स्वेच्छा से नज़रबंद अपने घरों में,
यह कैसा बिचित्र , संसार हो गया।
ट्रेन बस प्लेन बंदमिल कारखाने,
काम बिन आदमी बेकार होगया।
रामेश्वर साहू कवि मुम्बई (दतिया)