हिन्दी तो बिंदी हैं


देव भूमि में देववाणी से 

जन्मी भाषा हिन्दी है 

जन मानस में अभिव्यक्ति की

परिभाषा भी हिन्दी है

सींच रही जो नेह से अपने

भूमी हिन्द विशाल की

हिन्दी तो बिन्दी है 


सूर्य  बढ़ाता शोभा नभ की

हरता तिमिर प्रकाश  से 

मानवता उपजी मानव में 

प्रेम और विश्वास  से

ज्ञान द्वीप प्रज्ज्वलित करती

संघारक है अज्ञान की 

हिन्दी तो विन्दी है अपनी 

भारत माँ के भाल  की 


जाती धर्म  के भेद भाव से

उठ कर इसका मान करें

सब धर्मों से दूरी रख कर 

भारत माँ का सम्मान करें 

संस्कृति संरक्षित रखने बाली 

सेवा अनुपम ढाल  की 

हिन्दी तो विन्दी है अपनी 

भारत माँ के भाल  की 


पावन भारत भूमि फिर से 

विश्व गुरु कहलाएगी 

गूंजेगी यस गाथा के संग 

ध्वनियाँ फिर करताल की 

हिन्दी तो विन्दी है अपनी 

भारत माँ के भाल की 

डॉ महेश तिवारी 


उषा किरण कुंज, चन्देरी

अशोक नगर  मध्यप्रदेश