अयोध्या : रामभक्तों के बलिदान से ही संभव हुआ है 22 जनवरी 2०24


अब जब राम मंदिर के उद्घाटन की तारीख तय हो गयी है तो यह जानना भी जरूरी है कि आखिर इस तारीख के लिए हमने क्या खोया, कितना खून बहाया है। कितनी लंबी लड़ाई लड़ी है। कितनी पीढ़िंया सिर्फ यह सोचते-सोचते गुजर गयीं कि क्या वह अपनी आंख से राम मंदिर को देख पायेंगी। वर्ष 1528 से चली आ रही लंबी लड़ाई, कई शहीद और पीढ़ियों के संघर्ष का परिणाम अब हम सबके सामने है तो निश्चित रूप से यह अद्भुत घड़ी है। चलिये समझते हैं कि हमने इस घड़ी के लिए क्या कुछ गंवाया। हमें यूं ही नहीं राम लला का दिव्य मंदिर देखने को मिल रहा है और हमारी पीढ़ी धन्य है क्योंकि हमने संघर्ष भी देखा और आकार लेते राम मंदिर को अपनी आंख से देख पा रहे हैं।

'अभी श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के पदाधिकारी मुझसे मेरे निवास स्थान पर मिलने आए थे। उन्होंने मुझे श्रीराम मंदिर में प्राण-प्रतिष्ठा के अवसर पर अयोध्या आने के लिए निमंत्रित किया है। मैं खुद को बहुत धन्य महसूस कर रहा हूँ। ये मेरा सौभाग्य है कि अपने जीवनकाल में, मैं इस ऐतिहासिक अवसर का साक्षी बनूँगा।’ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक्स/ट्विटर पर पोस्ट कर राष्ट्र को उस क्षण के बारे में जानकारी दी, जिसकी प्रतीक्षा वह करीब 5०० साल से कर रहा है। श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने बताया है कि श्री राम जन्मभूमि मंदिर में भगवान श्री रामलला सरकार के श्री विग्रह की प्राण-प्रतिष्ठा 22 जनवरी 2०24 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करेंगे।

आज हम रामजन्मभूमि पर भव्य राम मंदिर को आकार लेते देख रहे हैं, प्राण-प्रतिष्ठा का दिनांक सुनिश्चित हो गया है। लेकिन यह यात्रा उतनी भी सहज नहीं रही है जितनी आज दिखती है। यह संघर्ष 1528 से ही शुरू हो गया था जब इस्लामी आक्रांता बाबर के सेनापति मीर बाकी ने अयोध्या में भगवान राम के जन्मस्थान पर मस्जिद का निर्माण करवाया। 9 नवम्बर 2०19 को सुप्रीम कोर्ट ने बताया कि पूरी जमीन रामलला की। मंदिर वहीं बनेगा।

लेकिन इस मोड़ तक पहुँचने के क्रम में न जाने कितने रामभक्तों ने खुद को बलिदान कर लिया। कितनी बार अयोध्या की गलियों के रामभक्तों के रक्त से लाल कर दिया गया। ऐसी ही एक तारीख 2 नवंबर 199० की है। 2 नवंबर 199० को तत्कालीन आईजी एसएमपी सिन्हा ने अपने मातहतों से कहा कि लखनऊ से साफ निर्देश है कि भीड़ किसी भी कीमत पर सड़कों पर नहीं बैठेगी। 

आइए जानते हैं कि अयोध्या में 199० की 2 नवंबर को क्या हुआ था? सुबह के नौ बजे थे। कार्तिक पूर्णिमा पर सरयू में स्नान कर साधु और रामभक्त कारसेवा के लिए रामजन्मभूमि की ओर बढ़ रहे थे। पुलिस ने घेरा बनाकर रोक दिया। वे जहाँ थे, वहीं सत्याग्रह पर बैठ गए। रामधुनी में रम गए।

फिर आईजी ने ऑर्डर दिया और सुरक्षा बल एक्शन में आ गए। आँसू गैस के गोले दागे गए। लाठियाँ बरसाई गईं। लेकिन रामधुन की आवाज बुलंद रही। रामभक्त न उत्तेजित हुए, न डरे और न घबराए। अचानक बिना चेतावनी के उन पर फायरिग शुरू कर दी गई। गलियों में रामभक्तों को दौड़ा-दौड़ा कर निशाना बनाया गया।

3 नवंबर 199० को छपी एक रिपोर्ट में लिखा गया था, 'राजस्थान के श्रीगंगानगर का एक कारसेवक, जिसका नाम पता नहीं चल पाया है, गोली लगते ही गिर पड़ा और उसने अपने खून से सड़क पर लिखा सीताराम। पता नहीं यह उसका नाम था या भगवान का स्मरण। मगर सड़क पर गिरने के बाद भी सीआरपीएफ की टुकड़ी ने उसकी खोपड़ी पर सात गोलियाँ मारी।’

इस घटना का उस समय की मीडिया रिपोîटग से लिए गए कुछ और विवरण पर गौर करिए :

पुलिस और सुरक्षा बल न खुद घायलों को उठा रहे थे और न किसी दूसरे को उनकी मदद करने दे रहे थे।

फायरिग का लिखित आदेश नहीं था। फायरिग के बाद जिला मजिस्ट्रेट से ऑर्डर पर साइन कराया गया। किसी भी रामभक्त के पैर में गोली नहीं मारी गई। सबके सिर और सीने में गोली लगी। तुलसी चौराहा खून से रंग गया। दिगंबर अखाड़े के बाहर कोठारी बंधुओं को खींचकर गोली मारी गई। राम अचल गुप्ता का अखंड रामधुन बंद नहीं हो रहा था, उन्हें पीछे से गोली मारी गई। रामनंदी दिगंबर अखाड़े में घुसकर साधुओं पर फायरिग की गई।

कोतवाली के सामने वाले मंदिर के पुजारी को गोली मारकर मौत के घाट उतार दिया गया। रामबाग के ऊपर से एक साधु आँसू गैस से परेशान लोगों के लिए बाल्टी से पानी फेंक रहे थे। उन्हें गोली मारी गई और वह छत से नीचे आ गिरे। फायरिग के बाद सड़कों और गलियों में पड़े रामभक्तों के शव बोरियों में भरकर ले जाए गए।

2 नवंबर 199० को विनय कटियार के नेतृत्व में दिगंबर अखाड़े की तरफ से हनुमानगढ़ी की ओर जो कारसेवक बढ़ रहे थे, उनमें 22 साल के रामकुमार कोठारी और 2० साल के शरद कोठारी भी शामिल थे। सुरक्षा बलों ने फायरिग शुरू की तो दोनों पीछे हटकर एक घर में जा छिपे।

सीआरपीएफ के एक इंस्पेक्टर ने शरद को घर से बाहर निकाल सड़क पर बिठाया और सिर को गोली से उड़ा दिया। छोटे भाई के साथ ऐसा होते देख रामकुमार भी कूद पड़े। इंस्पेक्टर की गोली रामकुमार के गले को भी पार कर गई।

अगले दिन छपी खबर में बलिदानियों की संख्या 4० बताई गई थी। साथ ही लिखा गया था कि 6० बुरी तरह जख्मी हैं और घायलों का कोई हिसाब नहीं है। मौके पर रहे एक पत्रकार ने मृतकों की संख्या 45 बताई थी। दैनिक जागरण ने 1०० की मौत की बात कही थी। दैनिक आज ने यह संख्या 4०० बताई थी। आधिकारिक तौर पर बाद में मृतकों की संख्या 17 बताई गई। हालाँकि घटना के चश्मदीदों ने कभी भी इस संख्या को सही नहीं माना।

दिलचस्प यह है कि घटना के फौरन बाद प्रशासन ने अपनी ओर से कोई आँकड़े तो नहीं दिए थे, लेकिन मीडिया के आँकड़ों का खंडन भी नहीं किया था। 

यहाँ तक कि फैजाबाद के तत्कालीन आयुक्त मधुकर गुप्ता तो फायरिग के घंटों बाद तक यह नहीं बता पाए थे कि कितने राउंड गोली चलाई गई थी। उनके पास मृतकों और जख्मी लोगों का आँकड़ा भी नहीं था।

जनसत्ता ने अपनी रिपोर्ट में स्पष्ट शब्दों में लिखा था, 'निहत्थे कारसेवकों पर गोली चलाकर प्रशासन ने जलियांवाले से भी जघन्य कांड किया है।’ यहाँ तक कि 3० अक्टूबर 199० के दिन भी कारसेवकों पर गोलियाँ बरसाई गई थी। आधिकारिक आँकड़े 3० अक्टूबर को 5 रामभक्तों के बलिदान की पुष्टि करते हैं।

3० अक्टूबर और 2 नवंबर 199० को अयोध्या जय सियाराम और हर-हर महादेव के जयकारे से गूँजायमान था। 22 जनवरी 2०24 यह सुनिश्चित करेगा कि अयोध्या में बस राम का नाम हो। 2०24 के इस 22 जनवरी का महत्व हिदू होकर ही जाना जा सकता है। 

अयोध्या में श्रीराम का काम कर रहे आगरा के मुस्लिम कारीगर, पत्थरों को तराश कर दे रहे अलग रूप

उत्तर प्रदेश के आगरा के कारीगरों ने अयोध्या में अपनी कलाकारी से सबको प्रभावित किया है। दरअसल, अयोध्या में बन रहा भगवान श्रीराम मंदिर का उद्घाटन जनवरी 2०23 में होना है। इसके लिए दिन- रात काम चल रहा है। मंदिर में लगने वाले पत्थरों पर खास तरीके की नक्काशी उकेरी जा रही है। इस काम को आगरा के फतेहपुर सीकरी और खेरागढ़ में किया जा रहा है। गांव में 65 शिल्पकार और कारीगर दिन रात मेहनत कर पत्थरों को बेहद खूबसूरत तरीके तराश रहे हैं। इन पत्थरों में ये कारीगर अपनी कला की जान फूंक रहे हैं। भगवान राम के मंदिर को संवारने के काम में जुटे मुस्लिम शिल्पकारों का कहना है कि प्रभु के नाम से उनकी रोजी रोटी चल रही है।

फतेहपुर सीकरी के दूरा और खेरागढ़ के नगला कमाल में हस्तशिल्पियों की कार्यशाला लगी है। इसमें 65 कारीगर काम कर रहे हैं। कार्याशाला के सुपरवाइजर किशन स्वरुप ने बताया कि राम मंदिर में लगने वाला पत्थर राजस्थान के वंशी पहाड़पुर से आता है। पत्थर को पहले बयाना में लगी स्पीटिग मशीन से इसे काटा जाता है। इसके बाद पत्थर को कार्यशाला में लाया जाता है। मंदिर के परकोटे के लिए दिन राम कार्य किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि 14 जून से अब तक करीब 5 हजार घन फीट पत्थर तराशकर अयोध्या भेजा जा चुका है।

कमल की नक्काशी में गढ़े जा रहे पत्थर

हस्तशिल्प कला में फतेहपुर सीकरी का दूरा गांव देशभर में प्रसिद्ध है। यहां से कारीगर देश के कोने कोने में जाकर अपनी कला का लोहा मनवा चुके हैं। कारीगर धर्मेंद्र कुमार ने बताया कि 1993 और 1995 में फतेहपुरसीकरी के दूरा गांव में तराशे गए हाथियों को लखनऊ भेजा गया था। खेरागढ़ के कारीगर महावीर का कहना है कि प्रभु श्रीराम के नाम से उन्हें रोजी रोटी मिल रही है।

सबसे खास बात यह है कि प्रभु के मंदिर में उनकी कला दिखाई देगी। ये उनके लिए गौरव की बात है। राम मंदिर में लगने वाले पत्थरों में कमल की नक्काशी उकेरी जा रही है। जिसमें छत, पिलर सेट, खरसल कुंभी, कोटासरा, बीम, सिल कढ़ाऊ, दासा, ठेकी आदि गढ़े जा रहे हैं।

धर्म-जात का नहीं है कोई चक्कर

कार्यशाला में काम कर रहे हस्त शिल्पकारों के साथ-साथ मजदूर भी लगे हैं। मेहनताने के तौर पर योग्यातानुसार एक से डेढ़ हजार रुपये प्रतिदिन मिल रहा है। कार्यशाला में लगे रहे हमीद खां का कहना है कि उन्हें धर्म और जात से कोई लेना देना नहीं है। ये काम तो राजनैतिक लोग करते हैं। गांव के रहने वाले लोग हैं। हमारी सुबह तो राम-राम से होती है। भगवान राम के नाम से उन्हें रोजी रोटी मिल रही है। नसरु खां कहते हैं कि वे तो मंदिर और मस्जिद दोनों के लिए मिलकर पत्थर बनाते हैं। यहीं पर मस्जिद के लिए पत्थर तराशते हैं। अब राम के मंदिर के लिए भी तराश रहे हैं। इनके साथ-साथ रफीक, सद्दाम रहनूं खां समेत कई मुस्लिम कारीगर काम कर रहे हैं। इनके साथ महिलाएं भी पत्थरों में रंग भरने का काम कर रही हैं।

अयोध्या के भव्य राम मंदिर पर तीन साल में खर्च हुए इतने करोड़ रुपये

उत्तर प्रदेश के अयोध्या में बन रहे भव्य राम मंदिर की खबरें अक्सर चर्चा में रहती हैं, अब हाल ही में खबर मंदिर निर्माण को लेकर आई है, श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने मंदिर के निर्माण को लेकर कहा है कि पांच फरवरी, 2०2० से 31 मार्च 2०23 तक 9०० करोड़ रुपये खर्च किए हैं ।

अभी भी ट्रस्ट के बैंक खातों में 3००० करोड़ रुपये जमा हैं. 

ट्रस्ट का कहना है कि राम मंदिर की नींव तैयार करने से लेकर पहले फ्लोर तक का काम जारी है साथ ही अभी के समय में अयोध्या में दूसरे फ्लोर का काम भी शुरू कर दिया गया है. ट्रस्ट के एक अधिकारी का कहना था कि मंदिर का निर्माण तीन चरणों में पूरा होगा और अंतिम निर्माण जनवरी 2०25 तक किया जाएगा. श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने मंदिर के निर्माण पर पांच फरवरी, 2०2० से 31 मार्च 2०23 तक 9०० करोड़ रुपये खर्च किए हैं और अभी भी ट्रस्ट के बैंक खातों में 3००० करोड़ रुपये हैं.

राम कथा संग्रहालय में रखा जाएगा मंदिर का इतिहास 

ट्रस्ट के अधिकारियों ने बताया कि बैठक में विदेशी मुद्रा में दान लेने की कानूनी प्रक्रिया समेत 18 बिदुओं पर चर्चा हुई और ट्रस्ट ने फॉरन कॉन्ट्रब्यूशन रेगूलेशन एक्ट के तहत अनुमति के लिए आवेदन किया है. राय ने बताया कि सरयू तट पर स्थित राम कथा संग्रहालय एक कानूनी ट्रस्ट होगा और इसमें राम मंदिर का 5०० साल का इतिहास और 5० साल के कानूनी दस्तावेज रखे जायेंगे.

प्रतिष्ठा समारोह में नरेन्द्र मोदी होंगे शामिल 

ट्रस्ट ने अपील की कि प्राण प्रतिष्ठा समारोह के दिन सूर्यास्त के समय देशभर के नागरिकों को अपने घरों के सामने पांच दीपक जलाने चाहिए. राम मंदिर निर्माण समिति के अध्यक्ष ने एक पखवाड़े बताया था कि 22 जनवरी को संभावित रूप से आयोजित होने वाले प्राण प्रतिष्ठा समारोह में प्रधानमंत्री मोदी के साथ देश भर के करीब 1०,००० नामी लोगों के शामिल होने की उम्मीद है.

भगवान राम की तस्वीर 1० करोड़ घरों तक पहुंचाने का लक्ष्य

राय ने कहा कि राम जन्मभूमि पर आने वाले प्रत्येक आगंतुक को प्रसाद के साथ भगवान राम की तस्वीरें वितरित की जाएंगी और ये लक्ष्य रखा गया है कि विराजमान भगवान राम की तस्वीर दो साल के भीतर 1० करोड़ घरों तक पहुंच जाए. उनका यह भी कहना है कि एक जनवरी से 15 जनवरी तक भारत के 5 लाख गांवों में पूजित अक्षत (पूजा किया हुआ चावल) बांटा जाएगा साथ ही अक्षत से विभिन्न इलाकों के मंदिरों में अयोध्या जैसा उत्सव मनाने की अपील की जाएगी.


मंदिर निर्माण तीन चरण में होगा पूरा

अभिषेक समारोह से पहले भगवान राम के सामने चावलों की पूजा की जाएगी और पूजित चावल पूरे भारत में बांटे जाएंगे साथ ही भारत भर के 5० केंद्रों के कार्यकताã अक्षत को विभिन्न केंद्रों तक पहुंचाएंगे. प्रतिष्ठा समारोह के लिए एक धार्मिक समिति का गठन किया गया है. बता दें कि मंदिर तीन चरणों में पूरा होगा और अंतिम निर्माण जनवरी 2०25 तक होगा.