आरंभ से ही रहा है लखनऊ कला महाविद्यालय का गौरवशाली महत्व व योगदान - भूपेंद्र अस्थाना
प्रदेश इस प्रथम कला महाविद्यालय से न जाने कितने ही अनगिनत कला के रत्न निकले ।
लखनऊ, 11 अगस्त 2023, शुक्रवार को सप्रेम संस्थान द्वारा कलाकार स्मृति शृंखला में 20वीं सदी के एक प्रमुख मूर्तिकार सैयद अफसर मदद नकवी के 90वीं जयंती पर याद किया गया। नक़वी का संबंध लखनऊ कला महाविद्यालय से 1960 से रहा जब वे इस महाविद्यालय के छात्र रहे । 1962 में पाकिस्तान चले गए थे। वरिष्ठ कलाकार जय कृष्ण अग्रवाल ने उन्हे याद करते हुए कहा कि नकवी हमवतन होने के साथ-साथ मेरे अच्छे मित्र भी रहे थे। सरहद के पार जाने के उपरांत भी वह अपनी जमीन को भुला न सके..। कला एवं शिल्प महाविद्यालय, लखनऊ का इतिहास शुरू से ही समृद्ध रहा है। महाविद्यालय के गौरव और महत्व को अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर शुरुआत से ही बड़ा महत्व दिया गया। और दिया भी क्यों न जाय, क्योंकि इसका विस्तार तो आरंभ से ही देशीय सीमा लांघ चुका था। इस महाविद्यालय से न जाने कितने ही अनगिनत कला के रत्न निकले और वे इस महाविद्यालय की सुंदर क्षवि को अंतर्राष्ट्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर ले गए और आज भी इस महाविद्यालय के नाम को ऊंचा कर रहे हैं। आज भले ही हम इस महाविद्यालय के अस्तित्व को नहीं बचा पा रहे हैं लेकिन कल अगर कला इतिहास को लिखा जाएगा तो इस महाविद्यालय के योगदान और यहाँ के कलाकारों का नाम स्वर्ण अक्षरों में अवश्य दर्ज किया जाएगा। महाविद्यालय ने अपनी महत्वपूर्ण भूमिका कला मे दिया है अब यह ज़िम्मेदारी हम कलाकारों की अवश्य बनती है की उसके योगदान को भूलने न दें और उसकी क्षवि और अस्तित्व को धूमिल के बजाय उसे सवारने मे भूमिका निभाए और महाविद्यालय के प्रति अपनी क्षमता अनुसार बचाने में कोशिश करें । बहरहाल आज हम इस महाविद्यालय से जुड़े एक महान विभूति को उनकी 90वीं जयंती पर याद कर रहें हैं जो एक मूर्तिकार रहे और अपनी मूर्तिशिल्प से दूर देशों मे इस लखनऊ कला महाविद्यालय से सीखे हुए हुनर का सुंदर प्रदर्शन किया। वे महान विभूति थे मूर्तिकार सैयद अफ़सर मदद नक़वी। सैयद अफसर मदद नकवी (10 अगस्त 1933 - 11 जनवरी 1997) 20वीं सदी के एक प्रमुख मूर्तिकार थे। वह अपनी शुद्ध यथार्थवादी स्मारकीय मूर्तियों के लिए जाने जाते हैं जिन्हें देश भर में कई स्थानों पर देखा जा सकता है (जैसे रोशन खान/जहांगीर खान स्क्वैश कॉम्प्लेक्स, फ्लीट क्लब, पाकिस्तान की कला परिषद , मरकज़-ए-सादात-ए) - अमरोहा सेंटर, हसन स्क्वायर कराची , स्टार गेट कराची, कायद-ए-आज़म अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा, विलेज रेस्तरां, मेट्रोपोल होटल आदि)। अफ़सर मदद नकवी एक उत्कृष्ट पाकिस्तानी मूर्तिकार और चित्रकार थे। वह सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ आर्ट्स एंड क्राफ्ट्स कराची के संस्थापक सदस्य थे । अफ़सर मदद नकवी का जन्म 10 अगस्त 1933 में भारत के अमरोहा (British India) में हुआ था। 1960 में उन्होने गवर्नमेंट कॉलेज ऑफ आर्ट्स एंड क्राफ्ट्स, लखनऊ , भारत से डिप्लोमा और पोस्ट-डिप्लोमा किया । उन्होने 60 के दशक की शुरुआत में लखनऊ कॉलेज ऑफ आर्ट्स एंड क्राफ्ट्स में प्रसिद्ध मूर्तिकार मोहम्मद हनीफ के अधीन प्रशिक्षण लिया। वह उन कुछ योग्य मूर्तिकारों में से एक थे जो आदमकद आर्मेचर, सरल कास्टिंग और स्थायी सांचों के साथ मल्टीपल कास्टिंग बनाने की तकनीक सिखा सकते थे। उन्होंने धातु, लकड़ी, सीमेंट, प्लास्टर ऑफ पेरिस, संगमरमर, पत्थर और मिट्टी का काम बड़ी सहजता और सुविधा से किया। वह 1962 में पाकिस्तान चले गए और उसके तुरंत बाद उन्होंने कराची आर्ट्स काउंसिल हॉल में एक एकल प्रदर्शनी किया, जो देश की पहली एकल मूर्तिकला प्रदर्शनी भी थी। जब श्री नवाबजादा वाजिद महमूद ने केंद्रीय कला और शिल्प संस्थान की स्थापना की, तो उन्होंने उनसे मूर्तिकला स्टूडियो स्थापित करने का अनुरोध किया और तब से वह इस जिम्मेदारी पर खरे उतरे हैं। अफसर नकवी मूर्तिकार, परंपरावादी, वफादार मित्र और स्नेही शिक्षक थे। पाकिस्तान में उनके कलाकारों की एक बड़ी संख्या थी, जिनमें से अधिकांश उनके छात्र थे। विस्तार का उनका गहन अवलोकन, शिल्प कौशल के प्रति कालातीत समर्पण और एक गुरु की सहज आत्मा उन्हें नाजुक पेंसिल स्केच से लेकर स्मारकीय मूर्तियों तक कला के किसी भी काम में जान फूंकने की अनुमति देती है और यही उन्हें वास्तव में दुनिया के शीर्ष कलाकारों में से एक बनाती है। प्रमुख कलाकारों और साहित्यकारों के मित्र और समकालीन, अफसर नकवी एक शांत, सेवानिवृत्त व्यक्ति हैं और उन्होंने पिछले पच्चीस वर्षों का अधिकांश समय संस्थान में कलाकारों की एक पीढ़ी को मूर्तिकला सिखाने में बिताया है। अपने काम में, सर नकवी पूर्वी मुहावरे के प्रतिपादक हैं। उपमहाद्वीपीय संस्कृति का उनका गहरा सौंदर्यशास्त्र हमें अतीत से जोड़ता है। कई कला विद्वानों का मानना है कि मुगल लघु कला और लोक कला ही हमारी एकमात्र विरासत है, जबकि शास्त्रीय भारतीय कला इस क्षेत्र के कला इतिहास का मूल है । वह अपनी कला में अत्यधिक कुशल थे, अपनी लंबी उंगली से वे चतुराई से मिट्टी में छोटी-छोटी मूर्तियाँ बनाते थे, जबकि वे अपनी चर्चाएँ जारी रखते थे, जैसे कि उनका अपना जीवन हो। जबकि एक मास्टर मूर्तिकार के रूप में प्रसिद्धि उनसे नहीं मिली, उनके कौशल ने बहुत सम्मान अर्जित किया और तकनीकी मामलों में हमेशा उनकी सलाह मांगी जाती थी, जिसके लिए उन्हें शायद ही कभी आर्थिक रूप से मुआवजा दिया जाता था। अफ़सर नकवी की दृष्टि और सौंदर्यशास्त्र उनकी रचनात्मक अभिव्यक्ति और उनके उत्कृष्ट कार्य में पूर्णता के समान स्तर को प्राप्त करने के उनके प्रयास में अमिट रूप से अंकित था। 1963 - एकल प्रदर्शनी- पाकिस्तान कला परिषद , कराची,1969 - एकल प्रदर्शनी- पाकिस्तान अमेरिकी सांस्कृतिक केंद्र (पीएसीसी),1971 - एकल प्रदर्शनी- सिंधु गैलरी, कराची,1975 - एकल प्रदर्शनी- पाकिस्तान कला परिषद, कराची, 1985 - समूह प्रदर्शनी- पांचवीं राष्ट्रीय कला प्रदर्शनी, इदारा सकाफत -ए- पाकिस्तान, 1992 - नॉर्थ सिटी स्कूल ऑफ आर्ट एंड आर्किटेक्चर, कराची में सिद्धांत और ललित कला (मूर्तिकला) विभाग के प्रमुख के रूप में शामिल हुए, 1995 - भिट्टाई इंस्टीट्यूट ऑफ आर्ट एंड क्राफ्ट्स की स्थापना। नक़वी साहब का निधन 11 जनवरी 1997 को 63 साल की अवस्था में कराची सिंध पाकिस्तान में हो गया। उनके निधन पर 1997 - एकल प्रदर्शनी - अफ़सर मदद नकवी को श्रद्धांजलि, पाकिस्तान कला परिषद, कराची की तरफ से दी गई । उनकी चित्रांकन, भित्तिचित्र कार्य और टेरा-कोट्टा में विशेषज्ञता रही। उन्होंने लकड़ी, धातु, प्लास्टर, सीमेंट और टेरा-कोटा से कई उत्कृष्ट मूर्तियां बनाई हैं। भारतीय शास्त्रीय मूर्तिकला, नकवी की नाटकीय प्रकृतिवादी यथार्थवाद के साथ एक कथा क्षण के सार को लकड़ी, पत्थर या धातु में कैद करने में सक्षम होने की क्षमता दिखती है।