देवराज दिनेश
देवराज दिनेश हिन्दी कवि देवराज दिनेश साहित्य जगत के प्रसिद्ध कवि एवं गीतकार थे। इनका जन्म 22 जनवरी 1922 को जलालपुर जट्टा, में एवं मृत्यु 12 सितंबर 1987 को दिल्ली में हुई। इन्होंने कई फिल्मों में सुंदर गीत भी लिखे हैं एवं अभिनय भी किया है। भारत मां की लोरी इनकी सबसे चर्चित रचना है। ध्यान से सुनें राष्ट्र-संतान,राष्ट्र का मंगलमय आह्वान. राष्ट्र को आज चाहिए दान , दान में नवयुवकों के प्राण. राष्ट्र पर घिरी आपदा डेक,सजग हों युग के भामाशाह दान में दे अपना सर्वस्व और पूरी कर मन की चाह राष्ट्र के रक्षा के हित आज,खोल दो अपना कोष कुबेर नहीं तो पछताओगे मीत,हो गई अगर तनिक भी देर समझकर हमें निहत्था,प्रबल शत्रु ने हम पर किया प्रहार किन्तु अपना तो यह आदर्श,किसी का रखते नहीं उधार हमें भी ब्याज सहित प्रतिउत्तर उनको देना है तत्काल शीघ्र अपनानी होगी शिव को रिपु के नरमुंडों की माल राष्ट्र को आज चाहिए वीर, वीर भी हठी हमीर समान . राष्ट्र को आज चाहिए दान , दान में नवयुवकों के प्राण. राष्ट्र के कण-कण में आज उठ रही गर्वीली आवाज़ वक्ष पर झेल प्रबल तूफान शत्रु पर हमें गिरानी गाज देश की सीमाओं पर पागल कौवे मचा रहे हैं शोर अभी देगा उनको झकझोर,बली गोविन्द सिंह का बाज किया था हमने जिससे नेह,दिया था जिसको अपना प्यार बना वह आस्तीन का सांप,हमीं पर आज कर रहा वार समझ हमको उन्मत्त मयूर,मगन-मन देख नृत्य में लीन किया आघात,न उसको ज्ञात,सांप है मोरों का आहार राष्ट्र चाहेगा जैसा,वैसा हीं अब हम देंगे बलिदान . राष्ट्र को आज चाहिए दान , दान में नवयुवकों के प्राण. राष्ट्र को चाहिए देवी कैकेयी का अदम्य उत्साह धूरी टूटे रण की,दे बाँह, पराजय को दे जय की राह राष्ट्र को आज चाहिए गीता के नायक का वह उद्घोष मोह ताज हर अर्जुन के मानस-पट पर लहराए आक्रोश आधुनिक इन्द्र कर रहा आज राष्ट्र हित इंद्रधनुष निर्माण यही है धर्म बनें हम इंद्रधनुष की प्रत्यंचा के बाण इन्द्र-धनु रूपी प्रबल एकता की सतरंगी छवि को देख शत्रु के माथे पर भी आज खिंच रही है चिंता की रेख राष्ट्र को आज चाहिए एकलव्य से साधक निष्ठावान. राष्ट्र को आज चाहिए दान , दान में नवयुवकों के प्राण. राष्ट्र को आज चाहिए चंद्रगुप्त की प्रबल संगठन-शक्ति राष्ट्र को आज चाहिए अपने प्रति राणाप्रताप की शक्ति राष्ट्र को आज चाहिए रक्त, शत्रु का हो या अपना रक्त राष्ट्र को आज चाहिएभक्त, भक्त भी भगतसिंह के भक्त राष्ट्र को आज चाहिए फिर बादल जैसे बालक रणधीर राष्ट्र की सुख-समृद्धि ले आयें,तोड़ रिपु कारा की प्राचीर और बूढ़े सेनानी गोरा की वह गर्व भरी हुंकार शत्रु के छूट जाये प्राण, अगर दे मस्ती से ललकार राष्ट्र को आज चाहिए फिर अपना अल्हड़ टीपू सुल्तान राष्ट्र को आज चाहिए दान , दान में नवयुवकों के प्राण. आज अनजाने में ही प्रबल शत्रु ने करके वज्र प्रहार हमारे जनमानस की चेतना के खोल दिये हैं द्वार राष्ट्र-हित इससे पहले कभी न जागी थी ऐसी अनुरक्ति संगठित होकर रिपु से आज बात कर रही हमारी शक्ति प्रतापी शक्तिसिंह भी देश-द्रोह का जामा आज उतार राष्ट्र की तूफानी लहरों में करता है गति का संचार आज फिर नूतन हिंदुस्तान लिख रहा है अपना इतिहास. राष्ट्र के पन्ने-पन्ने पर अंकित अपना अदम्य विश्वास .