डा. आनंद सिंह अखिल भारतीय अटल बिहारी वाजपेयी पुरस्‍कार से हुए सम्‍मानित
भोपाल, प्रोफेसर डा. आनंद सिंह को मध्‍यप्रदेश साहित्‍य अकादमी ने अखिल भारतीय अटल बिहारी वाजपेयी पुरस्‍कार 2021 से सम्‍मानित किया। यह पुरस्‍कार डा. आनंद सिंह को उनके कृति अथर्वा मैं वही वन हूं के लिए दिया गया है। भोपाल के रविंद्र भवन में आयोजित समारोह में सांस्‍कृतिक मंत्री ऊषा ठाकुर और अभिनेता आशुतोष राणा ने डा. आनंद को एक लाख रुपया और प्रशस्‍ति‍ पत्र व अंगवस्‍त्रम देकर सम्‍मानित किया। ज्ञातव्‍य है कि इसके पहले भी डा. आनंद कुमार सिंह को 2014 में अखिल भारतीय रामचंद्र शुक्‍ल पुरस्‍कार उनके कृति सन्‍नाटे का छंद के लिए दिया गया था। उत्‍तर प्रदेश हिंदी संस्‍थान लखनऊ द्वारा भी सन् 2014 और 2021 में दोनों कृतियों के लिए सम्‍मानित किया गया था। डा. आनंद कुमार सिंह की पहचान पिछले बीस वर्षों में एक कवि और आलोचक के रूप में है। उनकी पहली सहयोगी पुस्तक “गणपति ऑकल्ट” है जिसमें उन्होंने गणेश का रूपायन किया है। दूसरी पुस्तक “शक्ति ऑकल्ट” में आनंद ने आचार्य शंकर विरचित “सौंदर्य लहरी” का हिंदी में काव्यानुवाद किया और तीसरी पुस्तक “शिव ऑकल्ट” में आचार्य पुष्पदंत के अति प्रसिद्ध स्तुतिकाव्य “शिवमहिम्न” का हिंदी और अंग्रेज़ी कविता मेंअनुवाद प्रकाशित किया। तत्पश्चात्अज्ञेय की कविताओं पर व्याख्यात्मक आलोचना की पुस्तक “ सन्नाटेका छंद” प्रकाशित हुई जिसे अनेक अखिल भारतीय पुरस्कार भी प्राप्त हुए। आलोचना के साथ ही आनंद ने कविता के क्षेत्र में उल्लेखनीय उपलब्धि अर्जित की है। आनंद की काव्यानुभूति में पर्यावरण और अस्तित्व के प्रति गहन सौंदर्य की निष्ठा “ सौंदर्य जल में नर्मदा “ नामक काव्य पुस्तक में फूट पड़ी जिसे आलोचकों ने पर्यावरणीय चेतना का अद्भुत काव्य कहा है। उनकी दूसरी कविता पुस्तक“अथर्वा मैं वही वन हूँ “ नामक महाकाव्यात्मक कृति इक्कीसवीं सदी के सामाजिक यथार्थ को मनोजगत के विराट विस्तार में ले जाती है तथा मानवता के प्रासंगिक प्रश्नों पर नए विमर्श खड़े करती है। इस तरह वह एक ओर हिंदी साहित्य की पारंपरिक कविता के प्रवाह को जनोन्मुखी करती हुई उसे अध्यात्म और राजनीति का वह तेवर भी प्रदान करती है जिसके लिए साहित्य की ज़रूरत होती है। इस पुस्तक पर अक्षरा (मई २०२२) का विशेषांक प्रकाशित हुआ जिससे इसका महत्व बढ़ जाता है। आनंद की एक लंबी कविता “विवेकानंद” इसी पत्रिका के अथर्वा विशेषांक में प्रकाशित हुई है जिसे निराला द्वारा “तुलसीदास” में प्रयुक्त छंद में सफलतापूर्वक रचा गया है। यह कविता स्वामी जी के कन्याकमारी प्रवास के तीन दिनों के फ़्लैशबैक में भावी विवेकानंद के स्वप्नों को नए मनोलोक में घटित करती हुई सांस्कृतिक जागरण के उस स्वर को उद्दीप्त करती हैजो भारत की मुक्ति के लिए बहुत आवश्यक जागरण स्वर माना गया है। डा. आनंद कुमार सिंह ने अपनी प्रभावी उपस्थिति से हिंदी कविता के भरोसे को सुदृढ़ किया है जिसके लिए उन्हें अनेक संस्थाओं द्वारा बार बार पुरस्कृत किया गया है।