रामनवमी / विशेष-भगवान राम न्याय अन्याय के संघर्ष में कभी तटस्थ न रहकर सदैव निर्बलों को बल देते रहे
"रामहिं केवल प्रेम पियारा "
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अयोध्या से निर्वासित राजकुमार जब बुन्देली भूमि चित्रकूट में पधारते हैं तो आदिवासी -कोल किरात आनंद से झूम उठते हैं उनसे राम की भेंट का वर्णन तुलसीदास ने बीस पंक्तियों में करने के उपरांत अंत में कह दिया - ' रामहिं केवल प्रेम पियारा , जानि लेहुसो जानन हारा '। निषाद , शबरी , जटायु के प्रसंग में कतार के अंतिम व्यक्ति को वे भरत और लक्ष्मण की तरह प्रथम दर्जा देते हैं ।घायल जटायु की धूल गोद में लेकर अपनी जटाओं से झारते हैं । सांस टूट जाने पर अपने आंसुओं से पिता मान कर उसको जलांजलि देते हैं । वे करोड़ो करोड़ डबडबाई दीन-हीनों की आंखों में अपने आंसू एकमेक ही नही करते अपितु मानव पीड़ा को जड़ से उखाड़ फेंकने हेतु , चित्रकूट में सबसे ज्यादा 'रम' कर अपने राम- नाम को सार्थक बनाकर समता और न्याय आधारित रामराज्य का ब्ल्यू - प्रिन्ट तैयार करते हैं । आगत रामराज्य की दागबेल डालने के लिए उसका सपना , वे बुन्देली धरती पर ही बुनते हैं । न्याय-अन्याय के संघर्ष में वे तटस्थ नहीं रहते , जो बस कमजोर होता है , उसके पक्ष में जा खडे़ होते हैं । उनका मूल संदेश मानव प्रेम है । मानव प्रेम को सक्रिय रूप देना, सहानुभूति को व्यवहार में बदलना तथा जनता के मुक्ति-संघर्ष को विजयांतक लक्ष्य तक पहुँचाना ही सच्ची रामोपासना है ।
प्रत्येक देशवासी के हृदय में राम रचे बसे हैं। राम उस चिराग की तरह हैं, जो रोशनी करता है, इसलिए पूरे संसार में भारत का नाम सबेरे की धूप की तरह रोशन है और दुनिया भर के लोग उनसे प्रेरित हैं।
निश्चरहीन करों महि ,भुज उठाए प्रणकीन्ह" वाली धरती पर नवरात्र पर देवी पुराण के अनुसार अंतिम दिन राम की शक्ति पूजा फलीभूत हुई। कविवर निराला के शब्दों में
"होगी जय, होगी जय हे पुरुषोत्तम नवीन-
कहशक्ति ,राम के मुख में हुई लीन"
रणांगढ़ में विभीषण बड़े चिंतित हुए कि-
रावण रथी विरथ रघुवीरा,देख विभीषण भयउ अधीरा।।
पर वह थोड़ी देर के लिए यह भूल गए कि भगवान राम के दोनों पैर ही ' सौरज-धीरज जेहिरथ चाका ' है और इसी धर्म रथ पर लहराती सत्य -शील दृढ़ध्वजा पताका जी सनातन जीत दिलवाएगी। त्रिजटा द्वारा प्रातः काल देखे गए सपने को जमीनी हक़ीक़त बदलने में अब देर नहीं ।
' यह सपना मैं कहौं पुकारी , हुईयहि सत्य गयउ दिन चारी '
अन्ततः भारी संघर्ष के बाद 'जीत को सकै , अजय रघुराई की घड़ी आ गई।
अयोध्या से लंका तक बनवासी निर्वासित राजकुमार राम के साथ जनता जुड़ती चली गई , और कारवां बनता चला गया ।
क्रांतिदर्शी महात्मा तुलसीदास आगाह करते हैं कि त्रेता में यदि जनद्रोही राक्षसों का अंत नहीं किया जाता तो त्रैलोक्य में समता तथा न्याय आधारित रामराज्य कैसे आ सकता था ?
पर आज के युग में दरिद्रता का दशानन , एक व्यक्ति को नहीं ,अपितु सारी दुनिया को दबाये और सताये हुए है । हे प्रभु !
'दारिद्रय दशानन दवाई दुनी दीन बन्धु ' का संहार करके जनता की रक्षा करो और फिर से वह रामराज्य लाओ ,जहाँ 'नहिं कोउ अबुध' ,'न लक्षण हीना' अर्थात सभी प्रबुद्ध और सभी स्त्री-पुरुष हुनरमन्द-एक भी बेरोजगार नहीं ।
राम में प्रकटित परमेश्वरीय आविर्भाव मन पर तुरंत अंकित हो जाता है क्योंकि भाषा विज्ञान की दृष्टि से राम सरल अक्षर है अतएव वे सर्वस्वीकार्य परमेश्वर हैं परन्तु इसके विपरीत रावण ? यह संयुक्ताक्षर है, इसमें उसकी कर्मशक्ति त्याज्य हो गई है क्योंकि उसमें उसकी क्रूरता विरूपित है ।
प्रो. भगवत नारायण शर्मा