प्रख्यात चित्रकार अवधेश मिश्र की चित्र-प्रदर्शनी बिजूका रिटर्न्स का शुभारम्भ




भारतीय संस्कृति और उत्सव के रंगों में बिजूका का नया रूप


बिजूकों की बहुरंगी दुनिया में होड़ लगाते रंगों की उठती लहरों से सजी कला स्रोत वीथिका


26 मार्च से 01 अप्रैल कला स्रोत आर्ट गैलरी, अलीगंज, लखनऊ में चलेगी प्रदर्शनी 





कला स्रोत आर्ट गैलरी, लखनऊ द्वारा आयोजित प्रख्यात कलाकार और कला समीक्षक अवधेश मिश्र की चित्र श्रृंखला विजूका रिटर्न्स की प्रदर्शनी का उद्घाटन आज दीप प्रज्ज्वलित कर प्रो पूर्णिमा पाण्डेय, पूर्व अध्यक्ष, उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी और अध्यक्षता श्रीमती अंजू सिन्हा, संस्थापक एवं प्रकाशक कला दीर्घा, अंतरराष्ट्रीय दृश्यकला पत्रिका ने किया। इस अवसर पर कला स्रोत आर्ट गैलरी के निदेशक श्री अनुराग डिडवानिया और श्रीमती मानसी डिडवानिया के साथ वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी अरुण कुमार सिन्हा, कला दीर्घा अंतरराष्ट्रीय दृश्यकला पत्रिका की सह संपादक डॉ लीना मिश्र, भोपाल के वरिष्ठ कलाकार विवेक टेम्बे, अनिल रिसाल सिंह, प्रो राजेन्द्र प्रसाद, उमेन्द्र सिंह, जया विवेक, अनीता वर्मा, प्रशांत त्रिवेदी, फौजदार, प्रशांत चौधरी, लोकेश कुमार नगर के अनेक गणमान्य, कला रसिक कला आचार्यगण और युवा कलाकार उपस्थित थे।


उद्घाटन करते हुए प्रो पूर्णिमा पाण्डेय ने कहा कि भारतीय संस्कृति के जुड़े इस पात्र विजूका के माध्यम से इतनी बात कह जाना ऐसे परिपक्व कलाकार के ही वश की बात है।

श्रीमती अंजू सिन्हा ने कहा कि अवधेश की रचनात्मक क्षमता और ऊर्जा को मैं पिछले दो दशकों से देख रही हूं और वैश्विक स्तर पर कला जगत में चल रही प्रवृत्तियों को समझना और उसके समानांतर अपना मुहावरा गढ़कर अवधेश ने इस प्रदेश और देश का नाम रोशन किया है। हम सब इन्हें बधाई देते हैं।





प्रख्यात चित्रकार अवधेश मिश्र की बिजूका और बिजूका रिटर्न्स चित्र श्रृंखला उनकी बहुआयामी रचनात्मक दुनिया का एक महत्त्वपूर्ण आयाम है, जिसमें गहरे समकालीनता बोध के साथ लोक और आधुनिकता की पारस्परिक विसंगतियाँ उभर कर हमारे सामने आती हैं। इन चित्रकृतियों में कलाकार की अंतर्दृष्टि की झलक रंगों और आकृतियों के संयोजन-समायोजन में मिलती है। इस श्रृंखला में अवधेश मिश्र का चित्रकार तटस्थ द्रष्टा न होकर विषय की अंतर्वस्तु में अपनी स्पष्ट भूमिका प्रस्तुत करता है और इस तरह वह कई जगह व्यंग्यात्मक तथा आलोचनात्मक मुद्रा में सामने आता है, लेकिन स्थूल रूप में नहीं बल्कि पूरी संजीदगी और सूक्ष्मता के साथ। अवधेश मिश्र की चित्रकृतियाँ दर्शक को चौंकाती नहीं, बल्कि विस्मय में डाल देती हैं। उनकी बिजूका चित्र श्रृंखला की प्रदर्शनियां देश की विभिन्न प्रतिष्ठित कला वीथिकाओं सहित विदेश के अनेक महानगरों लग चुकी हैं और कला पारखी दर्शकों द्वारा खूब सराही गई हैं। इन चित्रकृतियों में रंगों के प्रयोग और आकृतियों की रचना में चित्रकार अवधेश मिश्र का अपना खास मुहावरा दिखाई देता है। यही वजह है कि बिजूका श्रृंखला उनका सिग्नेचर बन चुकी है। हम सभी जानते हैं कि हरे-भरे खेतों के विस्तार में बिजूके पशु-पक्षियों से फसलों की रखवाली के लिए पुतले के रूप में खड़े किए जाते हैं, जो पहरेदारी का धोखादेह तरीका है। हरे-भरे, फूलते-फलते खेतों का रंग फसल के तैयार होने तक बदलता रहता है और देखने पर लगता है कि गोया रंगों के समुद्र में लहरें उठ रही हैं। इस विस्तृत दृश्य के बीच खड़े एकाकी बिजूके भला किसका ध्यान नहीं खींचते! उनको पहनाए कपड़े हवा में हिलते हैं तो कभी वे चमकती धूप में तपस्वी की तरह एक ही मुद्रा में निश्चल खड़े नजर आते हैं। अवधेश मिश्र की चित्रकृतियों में भी होड़ लगाते रंगों की लहरें उठती दिखाई देती हैं और कई बार लगता है कि उनमें कोई बिजूका तैर रहा है, कोई डुबकी लगा रहा है तो कोई डूब भी रहा है। पर ये कृतियाँ इकहरे ढंग का प्रकृति या लोक चित्रण न होकर इनमें जिंदगी की उबड़-खाबड़, खुरदुरी जमीन भी है, केवल लोकजीवन ही नहीं हमारा शहरी जीवन भी है, दिलफरेब धोखेबाज बिजूके भी हैं जिनसे आए दिन हमारा साबका पड़ता है। यहाँ तक कि लोकतंत्र की पहरेदारी में तैनात बिजूके भी अवधेश मिश्र की कूची से बरी नहीं रह पाए हैं। चित्रकार अवधेश मिश्र का बिजूका संसार अनेक रंग-रूपों में हमारे सामने उपस्थित होता है। इसकी बहुआयामिता हमें सृजन के सम्मोहक संसार में बरबस खींच लेती है। इन चित्रकृतियों को देखना इनके कला संवेग से जुड़ना और खुद को समृद्ध करना है।


कला प्रेमियों के लिए प्रदर्शनी :


कला स्रोत की निदेशक श्रीमती मानसी डिडवानिया और श्री अनुराग डिडवानिया ने बताया कि प्रख्यात कलाकार डॉ अवधेश मिश्र के नवीनतम चित्रों की यह प्रदर्शनी दर्शकों के अवलोकनार्थ 01 अप्रैल तक मध्याह्न 12 बजे से रात 08 बजे तक खुली रहेगी।