कुछ समय पहले तक बच्चे घर के पिछवाड़े बने कमरे में जन्म लेते थे। उस समय सामूहिक परिवारों का प्रचलन था।वही कमरा हमारे ताऊ, बाबा, चाचा, बुआ,भैया लगभग सभी के जन्म का साक्षी रहा है। तब सामान्य रूप से हस्त क्रिया से ही प्रसव हो जाते थे, आजकल की तरह शल्य क्रिया प्रचलन में नहीं थी।हमारे विशेषज्ञों की चले तो वे बुखार भी शल्य क्रिया से ठीक करने लगें। इसी प्रकार जन्मतिथि भी सामान्यता दो होती थी,एक स्कूल की और एक जन्मपत्री की।दाखिला कराने गए चाचा अथवा भैया अपनी स्मृति , मास्साब के सुझाव और बच्चे की कद काठी अनुसार जन्म तिथि निर्धारित कर देते थे। और जब बच्चा समझदार होता तो वह अपनी जन्मपत्री,जन्म राशि,भाग्यफल आदि मैं भ्रमित रहता। विवाहोपरांत पति पत्नी इसी पर बहस करते कि कौन किससे कितना बड़ा हैऔर यह पहेली अन्त काल तक अनसुलझी ही रहती।
शासकीय सेवा में जन्मतिथि ही आपकी सेवा अवधि निर्धारित करती है। हमारे सहपाठी विद्या निवास का जन्म 16 अगस्त 1960 का है। इन्होंने जन्म लेते ही अ..आ..इ...ई..उ...में रोना प्रारम्भ कर दिया था। दो वर्ष के होते-होते अ,आ,इ,ई --- करने लगे । उनके पिता श्री ने उनकी प्रतिभा को पहचाना और चार वर्ष की आयु में ही उन्हें स्कूल में भर्ती कराने पहुंच गये। मास्साब ने आयु की समस्या बताई तो पिता श्री को बच्चे की प्रतिभा का अपमान लगा, उन्होनें दो-चार सुनाई तो मास्साब ने रास्ता दिखाया और बात जन्मतिथि की हेरा-फेरी पर आकर समाप्त हो गई । अब विद्या निवास की जन्म तिथि शासकीय रिकॉर्ड में1 जून 1958 हो गई।
इसी प्रकार हमारे एक और सहपाठी नगीना प्रसाद की मूल जन्मतिथि 9 सितम्बर 1956 है, किन्तु इन्हें अ....आ.... से आगे बढ़ने में काफी समय लगा। ये काफी विलम्ब से बोले, और उनका मानसिक विकास भी शनैः-शनैः हुआ। इस कारण स्कूल में इनका प्रवेश विद्या निवास के साथ ही हुआ।इनकी जन्मतिथि आगे खिसका दी गई ,और अब शासकीय रिकार्ड में इनकी जन्मतिथि 18 जुलाई 1958 हो गई। कक्षा में एक सिरे पर विद्या निवास रहते तो दूसरे सिरे पर नगीना प्रसाद , एक तीन फुट का,तो दूसरा ढाई फुट का। विद्या निवास को बच्चा बाबू एवं नगीना प्रसाद को दादा भाई के नाम से जाना जाता । शासकीय रिकार्ड में बच्चा बाबू, दादा भाई से एक माह सत्रह दिन बडे़ थे। बच्चा बाबू भावना प्रधान थे, उन्हे कोई डांटता तो उनकी ...... छूट जाती, छूट जाती तो सब हंसते, वे रोने लगते, मास्साब उन्हें समझाते तो बडे़ गम्भीर हो कर सुनते, मास्साब के जाते ही पीछे से दांत निपोर देते। मतलब बच्चा बाबू अपने छोटे होने का पूरा फायदा उठाते । मैट्रिक तक आते-आते नगीना प्रसाद किशोरावस्था में आ गये, बच्चा बाबू अभी भी बाल्यावस्था में थे। जब बॉबी पिक्चर आई तो हमने गोल मार कर पिक्चर देखने का कार्यक्रम बनाया, बच्चा बाबू साथ चलने को मचल गये। हमने कहा- ‘बच्चा बाबू ये पिक्चर बड़ों की है, बच्चों की नहीं।‘ बच्चा बाबू शातिराना अंदाज में बोले,' मैं नगीना प्रसाद से बड़ा हूं, ये देखो हमारा प्रमाण-पत्र, यदि नगीना जायेंगे तो हम भी जायेंगे।' हम निरूत्तर हो गये, साथ ले गये, पूरी पिक्चर मेंअजीब-अजीब प्रकार के प्रश्न पूंछते रहे, मसलन - कौआ तो कांव-कांव करता है, काटता कब है, काटता तो कुत्ता है, हीरो हीरोईन बडे़ लापरवाह है, कमरे की चॉबी खो दी, हिरोईन ने कटपीस के बचे कपड़े से पोशाक क्यों बनाई ? क्या वो गरीब थी? मकान को देखते हुये गरीब नहीं लग रही थी........ आदि आदि। सारी पिक्चर का मजा किरकिरा कर दिया । नगीना प्रसाद ने बच्चा बाबू का उपयोग अपने प्रेम पत्रों के आदान-प्रदान के लिये करना प्रारम्भ कर दिया । धीरे-धीरे बच्चा बाबू कार्य में पारंगत हो गये । नगीना प्रसाद निश्चिंत थे, किन्तु बच्चा बाबू अब नाम के ही बच्चे थे, उन्होंने नगीना प्रसाद को झटका दिया और स्वयं को उनके प्रेम क्षेत्र में स्थापित कर लिया। नगीना प्रसाद और बच्चा बाबू महाविद्यालीन शिक्षा पूर्ण कर शासकीय सेवा की तलाश में जुट गये, नगीना प्रसाद ओवरएज हो गये थे, पर शासकीय अभिलेख में बच्चा बाबू से छोटे थे। दोनों की नौकरी एक साथ शिक्षा विभाग में लगी । पढ़ाते-पढ़ाते दोनों सेवा-निवृित्त के करीब पहुंच गये, तभी बच्चा बाबू को स्मरण आया कि वे तो अभी साठ वर्ष के हुये नहीं और सेवा-निवृत्त हो रहे है ।अपनी जन्म-पत्री ले कर बडे़ बाबू के पास पहुंच गए। बड़े बाबू बोले ,'बच्चा मास्साब क्या शादी करने वाले है, अब आप बच्चे नहीं रहे जवान हो गये है।'
'अरे! क्या बडे़ बाबू, शासन माने तब न, वह तो हमें बूढ़ा मानती है, रिटायर कर रही है।' बच्चा मास्साब बोले।
'वो तो हमें भी होना है।'बडे़ बाबू बोले।
'पर आपको साठ में होना है, और हमें साढे़ अट्ठावन में, ये देख लो जन्म-पत्री।‘ बच्चा मास्साब ने कहा।
'बडे़ बाबू काइयां किस्म के प्राणी थे, वे बच्चा मास्साब का मंतव्य समझ गये, बोले,' आप जैसे कर्तव्यनिष्ठ आदर्श शिक्षक की विभाग को जरूरत है। आप नहीं हागे तो विभाग कैसे चलेगा? साहिब भी आप से प्रभावित हैं, तुरन्त मिल लो काम हो जायेगा।'
बच्चा मास्साब साहिब के कक्ष में पहुंच गये, नमस्कार की, साहिब ने पूछा- 'और बच्चा मास्साब बाल-बच्चे मजे में है।'
‘जी साहब, पर आगे नहीं रहेंगे, रिटायर हो रहा हूं।‘ बच्चा मास्साब गंभीर हो कर बोले।
‘जो आया है, वो जायेगा।‘ साहिब गंभीर हो गये।
‘पर समय से न, मैं साढे अट्ठावन का हूं, जन्म-पत्री देख लें।‘ बच्चा मास्साब ने पक्ष रखा।
‘शनि में राहू चल रहा है, आप भ्रमित न हो।‘ साहिब जन्म-पत्री देखते हुये बोले।
‘सर, मैं जन्म-पत्री जन्मतिथि के लिये दिखा रहा हूं।' बच्चा मास्साब ने कहा।
‘जन्म-पत्री किसने बनाई?‘ साहिब ने पूछा।
‘पंडित जी ने‘, बच्चा मास्साब बोले।‘
‘पंडित जी सरकारी मुलाजिम थे?'
‘नहीं‘,
‘डॉक्टर का सर्टीफिकेट‘
‘नहीं, घर के पिछवाडे़ पैदा हुये थे।‘
‘मरते समय ही दान-पुण्य याद आते है, बच्चा मास्साब बचपना छोड़ो, जाओ सम्मान से रिटायर हो जाओ, इसी में भलाई है।'‘ साहिब ने समझाया।
बच्चा मास्सब मुंह लटकाये हुये बाहर निकले, बाहर नगीना प्रसाद बैठे थे, देखते ही बोले- 'भाई साहब नमस्कार ..........। बच्चा मास्साब पैर पटकते हुये चले गये।
हमारे नगीना प्रसाद के जीवन में जन्मतिथि के कारण एक चमत्कार भी घटित हो गया। एक दिन नगीना बाबू की सांसें थम गई, डाक्टर ने मृत घोषित कर दिया, अंतिम संस्कार की तैयारियां होने लगी, अर्थी में लिटा दिये गये, फूल चढ़ाये जा रहे थे, तभी लाश में हरकत हुई, सब डर कर भाग खडे़ हुये और नगीना प्रसाद उठ कर बैठ गये । फिर उन्होंने यमलोक यात्रा की जो कहानी सुनाई वह संक्षेप में प्रस्तुत है।
नगीना बाबू की सांसें जैसे ही बन्द हुई, उन्हे दो यमदूत दिखाई दिये, यमदूत बोले- 'नगीना प्रसाद, तुम्हारी आयु पूरी हुई, हम तुम्हें लेने आये हैं।
‘हमारी कितनी आयु थी?‘ नगीना प्रसाद ने पूछा।
‘इकसठ वर्ष तीन माह सात दिन आठ घंटे पचपन मिनट तीस सैकेन्ड।’ यमदूत ने उत्तर दिया।
‘अभी तो हम रिटायर भी नहीं हुये, साठ से कम हैं, लो हमारा सर्टीफिकेट देख लो।‘ नगीना प्रसाद बोले।
‘सर्टीफिकेट यमराज को दिखाना, हमें जो आदेश हुआ, उसका पालन करते हैं।‘ चलो यमदूत बोले,और यमदूत नगीना प्रसाद को पकड़ कर ले जाने लगे, नगीना प्रसाद ने पीछे मुड़ कर अपने शरीर पर एक कातर दृष्टि डाली और साथ में चल दिये । कुछ समय में ही वे यमराज के समक्ष थे।
‘अच्छा नगीना प्रसाद को ले आये, चित्रगुप्त इनका लेखा तो देखो।‘ यमराज चित्रगुप्त से बोले।
चित्रगुप्त को बही पलटते देख नगीना प्रसाद बोले - ‘हुजूर अभी भी आपके यहां खाता बही चल रहे है, सुपर कम्प्यूटर लगवा लें, पृथ्वी लोक तो बहुत एडवांस हो गया है।‘
‘शांत नगीना शांत, चित्रगुप्त को अपना काम करने दो।‘ यमराज बोले।
'तात, नगीना की आयु पूरी हो गई है, इकसठ वर्ष तीन माह सात दिन आठ घंटे पचपन मिनट तीस सैकेन्ड।’
‘श्रीमान् अभी तो में साठ का भी पूरा नही हुआ, सरकारी रिकार्ड देख लें।‘ नगीना बाबू चित्रगुप्त की बात काटते हुये बोले ।
‘वत्स शांत ,यहां त्रुटि की कोई सम्भावना नहीं।‘ यमराज ने समझाया।
‘त्रुटि श्रीमान्, अभी कुछ दिन पहले आपके दूत रामलाल ,आधार कार्ड नम्बर एवाई 4235678 के स्थान पर दूसरे रामलाल, जिनका आधार कार्ड नम्बर एवाई 4235143 को ले आये थे और कैसी त्रुटि होती है, आपके यहां आधार कार्ड का सिस्टम है या नहीं?‘ नगीना प्रसाद ने पूछा।
‘नहीं, ये आधार कार्ड क्या होता है?‘ यमराज ने प्रति प्रश्न किया।
‘मृत्यु-लोक में घपले बढ़ने लगे थे, इसलिये सरकार ने सभी को एक-एक नम्बर दे दिया, जिसमें उसकी पूरी जन्म-पत्री रहती है, अब जनसंख्या काफी बढ़ गयी है, आत्माओं की आवक-जावक भी आपके यहां अधिक होती होगी, सब आत्माओं को एक यूनिक कोड दे दें, त्रुटि की संभावना नगण्य हो जायेगी‘, नगीना बाबू ने समझाया।
यमराज सोच में पड़ गये। चित्रगुप्त भांप गये, तुरन्त बोले - ‘महाराज इसे मृत्यु-लोक में वापिस भेजें, ये यहां की कार्य-संस्कृति भ्रष्ट कर देगा, सरकारी रिकार्ड के अनुसार अभी इसकी आयु बाकी है।‘
‘ठीक है।‘ यमराज बोले।
और नगीना बाबू मृत्यु-लोक में वापिस लौट आये।
जन्मतिथि में हेरा फेरी