लघुकथा " दान ?"
पाँच दिनों से प्रतिदिन कजरी भीख माँगते व देने के पश्चात आज महेश जी से रहा नहीं गया और अपनी मंशा उस पर जाहिर की -

' बेटी ! तुम तो खुद देवी का रुप हो फिर यहाँ बैठकर भिक्षावृति क्यों कर

 रही हो तुम्हारे पढ़ने लिखने के दिन है शर्म नहीं आती भिख माँगते हुए ?'

इस प्रश्न पर  कजरी की नजरे महेश जी की ओर उठी और पूरे आत्मविश्वास के साथ अनापेक्षित उत्तर दिया-

' अंकल ! आप जैसे ही दानवीरों के कारण ही हम जैसे बच्चों का भविष्य

खराब हुआ है मै भी पढ़ना चाहती हूँ किंतु बापू मार- मार कर मुझे भीख माँगने भेजते है और उन पैसों से वो शराब पीते हैं मै तो चाहती ही हूँ कि 

भीख मे एक भी पैसे ना मिले ताकि अगली बार से बापू मुझे भीख मांगने भेजे ही नहीं'

                  अवाक् महेश जी कजरी को अपलक निहारते रहे महसूस हुआ कि वास्तव मे भिक्षावृति हम जैसे नासमझों की ही देन है.