काशी के कायाकल्प की गाथा के सिपाही-मनोज राय


काशी यानी वाराणसी प्रधानमंत्री का संसदीय क्षेत्र है। प्रधानमंत्री ने कारिडोर के लिए 60 फुट चैड़े रास्ते का काशी की कायापलट करने के लिए ढेरों निर्माण  तुड़वाना, ट्रस्ट के पक्ष में लोगों से बिल्डिंग खरीदना, उसकी पेमेंट  रजिस्ट्री करवाना आदि कोई आसान काम नहीं था जबकि स्थानीय नागरिकों का विरोध और विवाद का मुद्दा अग्निपरीक्षा सरीखा था प्रधानमंत्री की महत्वाकांक्षी योजना को अमल  में लाने के लिए आयुक्त नितिन रमेश गोकर्ण के नेतृत्व में उन्होंने संयम और सहयोग से  कारिडोर को लेकर एक-एक करके सभी विवाद और रुकावटों का दूर  कराया।   काशी विश्वनाथ मंदिर इर्द-गिर्द से 280 आवासों, भवनों और लेकर गंगाघाट तक का रास्ता सुगमता दुकानों को खाली कराना एक दुरूह कार्य था । अब यह प्रोजेक्ट सफलता पूर्वक आगे गतिमान है उस वक्त मनोज राय वहीं पर एडीएम वित्त और राजस्व के पद पर तैनात थे।


कुशीनगर में 8 मई 1972 को जन्में मनोज राय   प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा कुशीनगर में ही हुई। इण्टरमीडिएट उन्होंने गोरखपुर के गवर्नमेंट जुबली इंटर कालेज किया। गेजुएशन और पोस्ट ग्रेजुएशन के लिए उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय को चुना। पोस्ट ग्रेजुएशन इकोनामिक्स से किया और अंत में जेएनयू से उन्होंने 1996 में एम.फिल की डिग्री हासिल की। बुद्धका दर्शन मानव के मूल गुणों से भरा पड़ा है। हर व्यक्ति बुद्ध से बहुत कुछ सीख सकता है क्योंकि बुद्ध दर्शन में सीखने और समझने के लिए बहुत कुछ है। उनका दर्शन व्यक्ति के उत्थान और प्रकृति के समन्वय पर आधारित है। मनोज राय भी बुद्ध की सीखों को अंगीकार करते हुए समाज के जन कल्याण के लिए शुरू से ही सक्रिय और सचेत रहे हैं। इसीलिए उन्होंने रेलवे की अच्छी खासी नौकरी को तिलांजलि देकर प्रशासनिक सेवा में आने का निश्चय किया। प्रशासनिक सेवा को वह ऐसी सेवा मानते हैं जिसमें व्यक्ति अपने प्रयासों से सकारात्मक बदलाव ला सकता है क्योंकि प्रशासनिक सेवा में व्यक्ति सीधे  जनता  से जुड़ा होता है। वह अपने कार्यों से जनता के दुःख-दर्द को दूर करने में उत्प्रेरक का कार्य कर सकता है। मनोज राय सर्व प्रथम सहायक प्रोविडेंट फंड कमिशनर के पद पर कार्य किया। बाद में वह सिविल सेवा मे आई.आर. टी. एस. के लिए चयनित हुए। यह एलाईड की सर्विस थी लेकिन उन्हें इस सेवा में न संतुष्टि मिल रही थी। न ही मजा आ रहा था और न ही कोई जनसेवा से जुड़े कार्य करने का अवसर मिल रहा था। इस नाते उन्होंने प्रशासनिक सेवा को अपनाया। और कुशाग्र बुद्धि का अंदाजा इस बात से लग जाता है कि उन्होंने 1999 पीसीएस वैच की परीक्षा में सफलता के झंडे ही गाई, बल्कि उस बैच के टॉपर होकर सुर्खियों में आ गये।वह शुरू से ही क्षेत्र के पिछड़ेपन और आर्थिक बदहाली को लेकर चिंतित रहते थे। अभावों से जूझते क्षेत्र को पिछड़ेपन के कैद से मुक्त करने के बारे में सोचते रहते थे। क्षेत्र का पिछड़ापन ही सिविल सेवा में आने का उनका कारण और प्रेरणा बना। वह इस संदर्भ में निर्णायक पहल करने के पक्षधर थे। यही वजह दी कि उन्होंने पीसीएस की तैयारी बड़ी गंभीरता और लगन के साथ की। नतीजा टॉपर के रूप में आया। पीसीएस बनने के लिए बड़ी मेहनत और बड़ी तैयारी तो उन्होंने की दी पर एक संयोग भी मानते हैं। उनका मानना प्रतियोगी परीक्षा में चयनित होने के लिए कोई अपने तयी भरपूर मेहनत करता आशातीत सफलता मिलती है तो खुशी होती है। मनोज राय का प्रशासनिक सेवा में का संदेश साफ रहा है कि आप इस आकर आम आदमी को राहत कैसे पहुंचा हैं। कार्यालय में आने वाले व्यक्ति की समस्या आपके लिए भले ही छोटी हो सकती है, उसके लिए तो वह सबसे बड़ी समस्या होती हमें आम आदमी की समस्या को हल करने पीछे मानवीय दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत नियम कानून और परिस्थिति के चक्कर में से मूल उद्देश्य भूल जाते हैं। हमें उन लोगों मदद और सहायता के लिए हमेशा आगे चाहिए, जिसकी कोई मदद नहीं करता उसकी मदद कर ही हम अपने पद की गरिमा को बनाये रख सकते हैं। हमें निरंतर यह सोचना चाहिए कि सरकारी योजनाओं का लाभ जन तक कैसे पहुंचाया जा सकता है। पहुंचाने में कई प्रक्रियात्मक दिक्कतें आती और हम उसका निराकरण करने के बजाय प्रक्रियाओं के गुलाम बन जाते हैं। जिसका नतीजा यह होता है कि हम आम जन की नहीं कर पाते हैं। हमें इस प्रवृत्ति से निकलने की आवश्यकता है। मनोज राय ने सेवा के दौरान जगहों पर रहते हुए कई उल्लेखनीय कार्य किये लेकिन इनमें से ग्रेटर नोएडा स्थित गौतमबुद्ध विश्वविद्यालय का रजिस्ट्रार रहते उन्होंने कई सुधारात्मक कार्य किये इससे उन्हें भी संतोष और संतुष्टि है। उल्लेखनीय इस विश्वविद्यालय का कैम्पस देश के सबसे अछे कैम्पस के रूप में जाना जाता है लेकिन जहां तक शैक्षणिक वातावरण की बात है तो वक्त नगण्य ही था। शैक्षणिक माहौल बनाने छात्रों को ऊर्जावान बनाने के लिए उन्होंने सारे प्रयास किये। यहां तक कि जड़ हो चुके सिस्टम को सुधारने के लिए टाटा कंसल्टेंसी सहयोग तक लिया। इसका परिणाम भी अच्छा निकला। करियर काउन्सलिंग यूनिवर्सिटी और इंडस्ट्र इंटरफेश के द्वारा छात्रों के बेहतर प्लेसमेंट लिए किये गये उनके प्रयास रंग लायेउन्होंने बड़ी संख्या में कैम्पस प्लेसमेंट कराया के साथ उन्होंने कैम्पस में साफ-सफाई को जबरजस्त अभियान चलाया। सफाई को वह इतने गंभीर और प्रयासरत रहे कि विश्वविद्यालय जे श्सर्वश्रेष्ठ क्लीजेस्ट कैम्पस का पुरस्कार हासिल किया। नोएडा में ही रहते हुए उन्होंने ग्रेटर नोएडा मेने के निर्माण में सक्रिय भूमिका निभाई उनके विशेष प्रयासों और पहल के चलते दिल्ली मेट्रो के साथ हुए समन्वय के चलते तीन लाइनों का उल्लेखनीय निर्माण हुआ। उनकी हॉबी की बात करें तो किताबें पढ़ना और यात्रा करना उन्हें पसंद है। वर्कआउट करना उनकी हॉबी में शामिल है। स्वस्थ और प्रसन्न रहना उन्हें प्रिय है। स्वस्थता के प्रति वह काफी सचेत और जागरूक हैं। उनका मानना है कि यदि हम स्वस्थ नहीं रहेंगे तो काम भी ठीक से नहीं से नहीं कर सकते हैं। इसलिए खानपान पर विशेष ध्यान देते हैं।