- जबसे चला हूँ पाने को मंजिल, क़दमों से जुड़ी रही हैं राहें,
चलता गया मैं अंधियारों में, पकड़े रहा हिम्मत की बाहें |
समय कहाँ था सुस्ताने का, थोड़ा रूका, फिर उठा दी निगाहें ,
हर मोड़ पर बने हैं कुछ साथी, हर मोड़ पर जुड़ी हैं कुछ राहें ||
- ऊंची नीची, विगम, विरल, अगम, अनूठी, धूमिल थी राहें,
गिर के उठना इन्होंने सिखाया, पास है मंजिल इन्होने बताया |
ओझल, बोझल, बेमाने ढंग से, न जाने किसने बुनी थी राहें,
हर मोड़ पर बने हैं कुछ साथी, हर मोड़ पर जुड़ी हैं कुछ राहें ||
- दिनकर से बरसे आग के गोले, वर्षा का तांडव घनघोर हुआ,
यही समय था मुस्काने का, विषमताओं से टकराने का|
बेबाक इरादे सीने में थे, मंजिल पर थी मेरी निगाहें,
हर मोड़ पर बने हैं कुछ साथी, हर मोड़ पर जुड़ी हैं कुछ राहें ||
- थम जा पगले इक मन बोले, बढ़ा कदम कुछ हौले हौले,
सोच कहीं कुछ छूट न जाए, बंधू-सखा कोइ रूठ न जाए|
उनसे मिली पग-पग पर दुआएं,थामे रहा अपनों की बाहें,
हर मोड़ पर बने हैं कुछ साथी, हर मोड़ पर जुड़ी हैं कुछ राहें ||
- कुछ साथी थे छूट गए, कुछ की बदल गयी थी राहें,
मुड़ा तो देखा क़दमों के निशाँ थे, कुछ धुंधले थे, कुछ बयाँ थे|
जिनके साथ चले थे मिलके, शायद इक दिन फिर मिल जाएं,
हर मोड़ पर बने हैं कुछ साथी, हर मोड़ पर जुड़ी हैं कुछ राहें||
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