थाती का पुनरावलोकन

 मेघा  शर्मा के नवीनतम चित्र की श्रृंखला एक ऐसे गवाक्ष की तरह है, जहां से अपनी संस्कृति एवं परंपराओं के विविध और विस्तृत रूप दिखाई पड़ते हैं। मेघा की कला में ज्यामिति के प्रयोग के साथ साथ हमारे वैज्ञानिक एवं तकनीकी विकास और समृद्ध धरोहर इमारतों का भौतिक एवं सांस्कृतिक वैभव और उसका सूक्ष्म विस्तार बखूबी देखा जा सकता हैवास्तव में इन कलाकृतियों में माध्यम और शैलीगत विशेषता के रूप में देखें तो यह एक बुनी हुई कला दिखती हैं। इसमें कांथा के छोटेछोटे धागे दिखते हैं जो छोटे-छोटे स्ट्रोक्स के माध्यम से अनेक रूपाकार ग्रहण करते हैं। ज्यामिति का प्रयोग इस तरह किया जाता है जहां से हम परिप्रेक्ष्य में परत दर परत चलते जाते हैं और परिप्रेक्ष्य में जाते समय हमें अपना पूरा विकास आदिम युग से सभ्य होना और अति आधुनिक होते हुए अपनी जरूरतों के सामान इकट्ठा करना तथा उन्हें बरतना, विभिन्न रूपों में दिखाया गया है। कहीं सिलाई मशीन का प्रयोग करते हुए मध्य वर्ग की महिलाओं के परिवेश में जाकर उनकी जीवन चर्या में झांकने की कोशिश की गई है तो कहीं दर्पण का प्रयोग कर उनकी सर्वाधिक पसंदीदा और निजी स्थान को प्रकाश वृत्त में लाया गया है। कहीं छोटे-छोटे गोले में चिड़िया, ग्रामोफोन, पंखे और विभिन्न घर गृहस्थी के रूपाकारों के साथ ही इस कला में जो सबसे महत्वपूर्ण बात आकृष्ट करती है वह है देवनागरी लिपि की गिनतियां और वर्णाक्षरों को संरक्षित करने का प्रयास। इस पूरी श्रृंखला में छोटे-छोटे आकार में या फिर आकार को प्रमुखता देते हुए कहीं फोकल प्वाइंट के रूप में अक्षरों और गिनतियों को रखा गया है। इससे एक तो देवनागरी लिपि, जिसको आधुनिक संस्कृति में लोग लगभग भूल चुके हैं, का संरक्षण हो रहा है, दूसरा हर व्यक्ति का अपना मूलांक या पसंदीदा गिनती होती है, जिसके निकट वह रहना चाहता है और आसपास उन गिनतियों को देखना भी चाहता है, ऐसे में दर्शकों को या कला प्रेमियों को यह चित्र अपनी पसंदीदा गिनतियों के साथ सुकून देने वाले हो सकते हैं। कहीं-कहीं ये चित्र टाइल्स और मुजाइक का भी प्रभाव देते हैं और उनके माध्यम से बनने वाले रूपाकार मन को स्पंदित करते हैं। मेघा के ये अमूर्तनोन्मुख चित्र लगभग धूसर वर्ण विधान में बने हैं, जो सदैव ही सुखद अनुभूति प्रदान करने वाले हैं। मेघा के चित्रों में आलंकारिकता खूब है लेकिन यह समकालीन कला की आधुनिक कला प्रवृत्तियों के समानांतर ही अपना एक अलग मुहावरा गढ़ती हैं, जिसमें कहीं सपाटपन नहीं है। मुख्य आकार और मुख्य आकर्षण के अतिरिक्त भी पूरे फलक पर देखने को बहुत कुछ है। मेघा की कला शिक्षा खैरागढ़ से होने के कारण वहां का जनजीवन और वातावरण, वहां की लाल मिट्टी, वहां के भूरे और धूसर अठखेलियां करते बादलों का प्रभाव इन चित्रों की रंगत में देखा जा सकता है। पिता प्रख्यात चित्रकार एवं प्रोफेसर डॉ महेश चंद्र शर्मा का संरक्षण भी परोक्ष रूप से मेघा की कला को समृद्ध करता है, जो निकट भविष्य में भारत की समकालीन कला के महत्वपूर्ण हस्ताक्षर के रूप में उनको उभरने में सहायक होगा