पीठ पर बढ़ती किताबों का बोझ,
स्वयं को सर्वश्रेष्ठ बनाने की चिंता
सभी कलाओं में निपुणता की चाह,
सफलता के शिखर प्राप्ति की इच्छा
सपनों के बिखर जाने का डर,
अपेक्षाओं पर खरा न उतर पाने का डर
मित्रों से पिछड़ जाने का डर,
मंजिल तक न पहुंच पाने का डर
पीछे छूटते नैतिक मूल्य,
अवसाद की ओर बढ़ते कदम
भावनाशून्य होती मानसिकता,
डगमगाता आत्मविश्वास
बचपन खो गया है कहीं.!