हमारे देश के अलग अलग प्रांतो के लोगों को एक दूसरे के साथ बातचीत करने में कठिनाई होती है, क्योंकि सबकी भाषा एक नहीं है । पहले भी इसके लिए काफी प्रयास हुए हैं, पर आजतक ऐसी भाषा अस्तित्व में नहीं है । एक नयी योजना यहा प्रस्तुत की गयी है । इस आसान योजना से 15 वर्षो में समूचे भारत में एक भाषा के स्वप्न साकार होगा । भारतीय भाषाओं में 10% से 30% तक संस्कृत शब्द है । मराठी में 'पाणी' हिंदी में 'पानी', संस्कृत में 'जल', बांगला में 'जोल', कन्नड में 'नीर' शब्द Water का समानार्थी है । सामान्य नागरिक को 3000 शब्दो की रोजमरा जीवन में जरुरत होती है । यदी 3000 शब्दों की सूची बनाए और उसमे समानार्थी विभिन्न भारतीय भाषाओं में इस्तमाल कीये जाने वाले अधिक चार शब्द (जो संस्कृत से है) स्कूलों में पढाएँगे तो एक भाषा देश में सब को ज्ञात होगी ।
संपूर्ण देश में सभी लोगों को एक सामान्य भाषा आने से निम्न लिखित फायदें होंगे ।प्रवास में बातचीत की आसानी ।सरकार के दस्तावेंजो में आसानी ।हमारी भाषाँओं के साहित्य का आपस में आदान प्रदान ।संपूर्ण देश में अच्छी शिक्षा पद्धति ।
इस लेख में दूसरा महत्व का विचार स्कूलों में बच्चों को विविध कक्षाओं में भाषाएँ तथा लिपीयाँ कैसी पढाई जानी चाहिए इस नयी पद्धति का सुझाव है । आजकल 1 कक्षा से ही बच्चा राज्य की भाषा और उसकी लीपी, हिंदी राष्ट्रभाषा और उसकी देवनागरी लीपी तथा अंग्रेजी और उसकी लीपी यह सभी 3 भाषाएँ एक साथ पढता है । इस कारण उसका जीना मुश्किल हो गया है । यहाँ सुझाव है की 1 से 3 कक्षा तक केवल मातृभाषा (प्रांत की भाषा) पढाई जाये, 4 से हिंदी-देवनागरी पढाई जाये, 7 कक्षा से संस्कृत तथा अंग्रेजी शुरूआत से पढाई जाये ।
इस पद्धती को कार्यान्वित करने से विद्यार्थी हसते खेलते सभी भाषाएँ अच्छी तरह सीख पायेगा । इसके कारण शिक्षक एवं विद्यार्थी के माता-पिता का भी बोझ कम होगा । वह हमारी संस्कृति, रहनसहन से जुडा रहेगा । हमारी सभी भाषाएँ तथा संस्कृत भाषा का विकास होगा । विद्यार्थीओं में भारतीय संस्कारों का सिंचन होगा । एक नये जोशीले राष्ट्रप्रेमी समाज का निर्माण होगा ।
योजना में नया विचार क्या है : पहला विचार 3000 शब्दों की सूची
- आम आदमी को जीने के लिये 3000 शब्दों की जरुरत होती है । हमें सभी भारतीय भाषाओं तथा संस्कृत में ऐसी 3000 शब्दों की सूची तैयार करनी है ।
- 3000 शब्द वही होंगे लेकिन अलग अलग प्रदेशों के विद्यार्थी अपनी अपनी मातृभाषा एवंलिपि में पढेंगे ।
इसके अलावा 3000 शब्दों के समानार्थी अन्य भाषाओं के 4 अधिक शब्द भी विद्यार्थी अपनी मातृभाषा की लिपि में पढेंगे । हमे 4 ऐसे शब्द चुनने है जो भारत में 60% से 70% लोग इस्तमाल करते हो तथा जो संस्कृत से जुडे हो । जो शब्द एक से अधिक भाषाओं में हो उसे प्राधान्य देना है । - ये 4 अधिक शब्द हर प्रदेश के भाषा के लिये अलग अलग भाषाओं से लिये जायेंगे । पढाए जाएँगे । जिन 4 भाषाओं के शब्द गुजराती विद्यार्थी पढेगा उससे अलग भाषाओं के शब्द तामिल विद्यार्थी पढेगा ।
- इन 3000 शब्दों की सूची हमें स्कूलो में समुचे देश में पढानी है । इस योजना के फल स्वरुप तमिल आदमी बंगाली, हिंदी, शब्दों के जानेगा और आसमी आदमी को हिंदी और कन्नड शब्द ज्ञात होंगे ।
दूसरा नया विचार-- स्कूलों में विविध कक्षाओं में भाषाएँ पढाने की नयी पद्धति
- कक्षा पहली से तीसरी तक केवल मातृभाषा और उसकी लिपि में पढना है । बोलना और व्याकरण आसपास और घर में हँसते खेलते स्वाभाविक रुप से आता ही है । केवल मातृभाषा की लिपि पढने का श्रम करना है ।
- कक्षा चौथी से हिन्दी पढने के लिये केवल देवनागरी लिपि पर ध्यान केन्द्रित करना है और हिन्दी का व्याकरण पढना है । उसे शब्द, अर्थ, कविता, लेख पहले से ही मातृभाषा और उसकी लिपि में पढे हैं ।
- कक्षा 7 वी में संस्कृत पढना है । उसे देवनागरी लिपि और हिंदी ज्ञात है । केवल संस्कृत व्याकरण सीखना है ।
यहाँ से उसे अंग्रेजी शुरुवात (A,B,C,D) से पढनी है । - यदि छात्र चाहे तो कक्षा 9 से 12 तक वह और कोई भारतीय या विदेशी भाषा जैसे के चीनी, जापानी, फ्रेंच, जर्मन आदि पढ सकता है ।
उपर दी गई योजना के तहत पढाई स्कूलों में करने के फायदेः
- 10 साल की स्कूली शिक्षा में हर छात्र 3000 संस्कृत के शब्दों से पूरी तरह (भारतभर में इस्तमाल करने वाले) वाकेफ होगा तथा देवनागरी लिपि के द्वारा भारतभर में सभीको एक भाषा ज्ञात होगी ।
- उपर दी गई व्यवस्था में भाषाएँ / लिपि को पढाई में तीन तीन साल का अंतर है । पहले मातृभाषा (लिपि), फिर हिंदी – देवनागरी लिपि फिर संस्कृत भाषा और अंग्रेजी । इस तरह पढ़ने / पढाने से लेख / शब्द / लेखन / पाठ / कविताएँ / निबंध जो अगले तबक्के में पढे / पढाएँ है वही दोहराए जा सकते है केवल दूसरी नयी लिपिया दूसरी नयी भाषा में । इससे छात्र, उसके माता / पिता तथा शिक्षकों का बोझ बहुत कम होगा और विद्यार्थी हँसते खेलते ज्यादा परिश्रम किये बिना आसानी से भाषाएँ सीख पाएगा । छात्रों का पढाई का बोझ कम होगा । यह इस पद्धति की उपलब्धी है / विशेषता यह कि छात्र को एक बार किसी एक ही भाषा या लिपि को पढने में महेनत करनी है । भाषाएँ और लिपि की पढाई को अलग करके यह संभव हुआ है ।
- संस्कृत (भाषा) – संस्कृति – संस्कारभौतिक – भावनात्मक – अध्यात्मिकहर नागरिक का और समाज का विकास इस योजना से निश्चित रुप से होगा ।******************************
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हमारी सभी भाषाओं का विकास करने के लिये और पूरे देश में एकात्मकता लाने के हेतू
शालामें संस्कृत पढ़ाने का नया प्रस्ताव
पी.डी. लेले, भौतिकशास्त्र विभाग, गुजरात युनिवर्सिटी, अहमदाबाद-380009
क्रम | संस्कृत | हिन्दी | मराठी | कन्नड | कन्नड उच्चार | बांगला | बांगला उच्चार | तेलुगू | तेलुगू उच्चार |
१ | पानीय, जल, नीर | पानी, जल, नीर | पाणी | ನೀರು | नीरु | জল | जॉल | నీరు, జలము,నీలాలు | नीरु, जलमु, |
२ | मनुष्य, मानव, पुरुष | मनुष्य, मानव, पुरुष | मनुष्य, मानव, पुरुष | ಮನುಷ್ಯ, ಮಾನವ,ಪುರುಷ | मनुष्य, पुरुष | মানুষ | मानुष | మనిషి, మానవుదు | मनीषि, मानवुडू |
३ | स्त्री, महिला, नारी | स्त्री, महिला, नारी | स्त्री, महिला, नारी | ಸ್ತ್ರೀ, ಮಹಿಳೆ, ನಾರಿ | स्त्री, महिळे, नारी | নারী | नारी | స్త్రీ, మహిళ | स्त्री, महिळा |
४ | शाला, पाठशाला | शाला, पाठशाला | शाळा, पाठशाळा | ಶಾಲೆ, ಪಾಠಶಾಲೆ | शाले, पाठशाले | বিদ্যালয় | बिद्यालय | పాటశాల, బడి | पाठशाला, बड़ि |
५ | मार्ग, पथ | मार्ग, पथ, रास्ता | मार्ग, पथ, रस्ता | ಮಾರ್ಗ, ಪಥ, ರಸ್ತೆ,ಹಾದಿ | मार्ग, पथ, रस्ते, हादि | রাস্তা | रास्ता | మార్గము, దారి | मरगमु, रास्ता |
६ | सूर्य, रवि, आदित्य | सूर्य, रवि, सूरज | सूर्य, रवि | ಸೂರ್ಯ, ರವಿ | सूर्य, रवि | সূর্য | सुरजो | సూర్యుడు | सूर्युडु |
७ | वृक्ष, तरु | वृक्ष, पेड, झाड | वृक्ष, झाड | ವೃಕ್ಷ, ಮರ, ಗಿಡ | वृक्ष, मरा, गिडा | গাছ | गाछ | వృక్షము,చెట్టు | वृक्षमु, चेट्टु |
८ | नेत्र, नयन, चक्षु | नेत्र, नयन, आँख | नेत्र, नयन, डोळा | ನೇತ್ರ, ನಯನ, ಕಣ್ಣ | नेत्र, नयन, कण्ण | চক্ষু | चोखू | కన్ను | कन्नु |
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