युग प्रवर्तक महायोगी गोरखनाथ पर केन्द्रित त्रिदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी देश ही नहीं विदेशों में भी महायोगी गोरखनाथ के विचारों का प्रभाव था - योगी आदित्यनाथ


लखनऊ। उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा त्रिदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। दिनांक 26 सितम्बर, 2019 को यशपाल सभागार, हिन्दी भवन में उद्घाटन सत्र में पूर्वाह्न 10.30 बजे से डाॅ0 रमेश पोखरियाल 'निशंक', मानव संसाधन विकास मंत्री, भारत सरकार की अध्यक्षता, मुख्य अतिथि श्री योगी आदित्यनाथ, माननीय मुख्यमंत्री, उ0प्र0 एवं अध्यक्ष, उ0प्र0 हिन्दी संस्थान, डाॅ0 सदानन्द प्रसाद गुप्त, मा0 कार्यकारी अध्यक्ष, उ0प्र0 हिन्दी संस्थान की सहभागिता में किया जा रहा है।     
   दीप प्रज्वलन, माँ सरस्वती की प्रतिमा एवं महायोगी गोरखनाथ के चित्र पर पुष्पार्पण के उपरान्त प्रारम्भ हुए कार्यक्रम में वाणी वन्दना संगीतमयी प्रस्तुति डाॅ0 पूनम श्रीवास्तव द्वारा की गयी। मंचासीन अतिथियों का उत्तरीय द्वारा स्वागत डाॅ0 सदानन्द प्रसाद गुप्त,   मा0 कार्यकारी अध्यक्ष, उ0प्र0 हिन्दी संस्थान ने किया। इस अवसर पर संस्थान द्वारा प्रकाशित 'भोजपुरी के संस्कार गीत'(लेखक सुश्री शची मिश्र), 'देवेन्द्र कुमार बंगाली'(लेखक डाॅ0 कृष्णचन्द्र लाल) एवं वैदिक वाड्मय का परिशीलन' (लेखक डाॅ ओमप्रकाश पाण्डेय) इसके अतिरिक्त 'रामचरित उपाध्याय ग्रंथावली'(सम्पा0 डाॅ0 कन्हैया सिंह), 'अथातो भक्ति जिज्ञासा'(डाॅ0 रामकृष्ण) पुस्तकों का लोकार्पण भी मंचासीन अतिथियों द्वारा किया गया। 
  संगोष्ठी में स्वागत एवं प्रस्ताविकी करते हुए डाॅ0 सदानन्द प्रसाद गुप्त,  कार्यकारी अध्यक्ष, उ0प्र0 हिन्दी संस्थान ने कहा -वैदिक काल से ही महान चिन्तकों ने महायोगी गोरखनाथ जी के अनुयायी सम्पूर्ण भारत में पाये जाते हैं। नाथ सम्प्रदाय के चिन्तकों ने राष्ट्रीय चेतना की अलख भारत में जगायी थी। युग प्रवर्तक महायोगी गोरखनाथ जी ने अपने विचारों एवं चिन्तकों से देश की जनता को एक नयी दिशा दी।  
  संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र में बीज वक्तव्य देते हुए डाॅ0 कन्हैया सिंह, वरिष्ठ साहित्यकार, आजमगढ़ ने कहा - महायोगी गोरखनाथ जी का समय शून्य समय था। उनके समय में साधना के केन्द्र घृणा के केन्द्र बन गये थे। उसी समय महायोगी गोरखनाथ जी का उदय हुआ। उन्होंने समाज में व्याप्त विकृतियों को दूर करने का प्रयास किया। गोरखनाथ जी ने साधना का संदेश देते हुए उन्होंने समाज को स्पष्ट निर्देश दिये। शास्त्रों के व्यवहारिक ज्ञान पर उन्होंने बल दिया। मनुष्य को इन्द्रियों को नियंत्रण में रखना चाहिए। वे मद्य के निषेध के पक्षधर थे। सामाजिक समरसता का संदेश समाज को दिया। महायोगी गोरखनाथ जी ने समाज के प्रत्येक वर्ग को शांति एवं प्रेम का संदेश दिया। भाषा के क्षेत्र उन्होंने युगप्रर्वतक का कार्य किया। महायोगी गोरखनाथ जी को हिन्दी का प्रथम कवि माना जाता है। आज भी गोरखनाथ जी की साधना संदेश, चिन्तन प्रासंगिक है।  
  अध्यक्षीय सम्बोधन में डाॅ0 रमेश पोखरियाल 'निशंक', मानव संसाधन विकास मंत्री, भारत सरकार ने कहा - युगप्रर्वतक गोरखनाथ जी की आराधना शिवरूप में की जाती है शिव का अर्थ होता होता है कल्याणकारी। शंकर हिमालय के रूप में दुनियाँ की रक्षा कर रहा है। जितनी ही जहरीली हवाएँ हैं वे हिमालय से टकराकर वापस आती है शुद्ध होकर।
गोरखनाथ जी का सुख दुख में आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है। विषम विपरीत परिस्थियों में गोरखनाथ जी योद्धा के रूप मंे वृहत्तर प्रभाव में दिखायी देते हैं। वे जो योगमार्ग लेकर जो चले थे वह सबसे शक्तिशाली रूप में उपस्थित था। आज वह योग पूरी दुनियाँ द्वारा अपनाया जा रहा है। महायोगी जी ने अध्यात्म के सूत्र को लेकर पूरी दुनियाँ द्वारा अपनाया जा रहा है। 
 सत्र के मुख्य अतिथि श्री योगी आदित्यनाथ, माननीय मुख्यमंत्री, उ0प्र0 एवं अध्यक्ष, उ0प्र0 हिन्दी संस्थान ने अपने उद्बोधन में कहा- महायोगी गोरखनाथ जी नाथ संप्रदाय के प्रवर्तक हैं। आज के आस्थावान समाज में नाथ पंथ संप्रदाय की उपस्थिति दिखायी पड़ती है। देश ही नहीं विदेशों में भी उनके विचारों का प्रभाव था। उनके विचारों ने वहाँ नया संदेश दिया। महायोगी गोरखनाथ जी शिव का स्वरूप माना जाता है। नेपाल में भी महायोगी गोरखनाथ जी का भव्य मंदिर है तथा वहाँ नाथ संप्रदाय के योगी व भक्त हैं। भारत में कोई ऐसा प्रान्त नहीं है जहाँ योगी गोरखनाथ जी के अनुयायियों  की संख्या बहुतायत में मिल जाते हैं। नेपाल, बांग्लादेश, पाकिस्तान, अफगानिस्तान जैसे देशों में महायोगी गोरखनाथ जी के शिष्य मिलते हैं। आयुर्वेद के क्षेत्र में भी महायोगी गोरखनाथ जी ने योगदान दिया। नाथ संप्रदाय में मानव कल्याण का संदेश है। 'इन्साइक्लोपीडिया आॅफ गोरखनाथ' पर आज कार्य करने की आवश्यकता है।    
  अभ्यागतों के प्रति आभार व्यक्त करते हुए श्री जितेन्द्र कुमार, प्रमुख सचिव, भाषा, उ0प्र0 शासन ने कहा- उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा 'युग प्रवर्Ÿाक महायोगी गोरखनाथ' पर आयोजित त्रिदिवसीय दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी में पधारे सभी विद्वानों के प्रति हम आभारी हैं। सर्वप्रथम हम धन्यवाद देना चाहते हैं - मा0 डाॅ0 रमेश पोखरियाल 'निशंक', मानव संसाधन विकास मंत्री, भारत सरकार के प्रति जिन्होेंने इस उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता करने का अनुरोध स्वीकार किया एवं श्री योगी आदित्यनाथ,  मुख्यमंत्री, उ0प्र0 एवं अध्यक्ष, उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान जिन्होंने मुख्य अतिथि के रूप में पधारने के अनुरोध को स्वीकार किया। माननीय कार्यकारी अध्यक्ष महोदय के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करना है जिन्होंने इस समारोह की परिकल्पना करते हुए हमें यह अवसर दिया कि हम इसे आयोजित कर सकें।
  समारोह में आमंत्रित वाह्य एवं स्थानीय साहित्यकारों के सहयोग से हमारा समारोह सफलता पूर्वक सम्पन्न हो सका। इसी क्रम में सभागार मंे उपस्थित सभी अतिथियों का भी संस्थान परिवार आभारी है आपके आगमन से ही हमारे समारोह की सफलता सुनिश्चित होती है। मीडिया कर्मियों का भी बहुत धन्यवाद। आपका सहयोग भी हमें निरन्तर मिलता रहता है। 
  संस्थान के सभी सहयोगियों को भी मैं बधाई देना चाहता हूँ जिनके अथक प्रयास से यह समारोह अपनी गरिमा को प्राप्त हो सका। अन्त मंे सबके प्रति आभार। आशा है आप सबका सहयोग हमें इसी प्रकार निरन्तर मिलता रहेगा।
 उद्घाटन सत्र का संचालन डाॅ0 योगेन्द्र प्रताप सिंह, प्रयागराज ने किया।


 




प्रथम सत्र
 'दक्षिण एवं दक्षिण पूर्व भारत में नाथपंथ का प्रभाव' विषय पर (महाराष्ट्र में नाथपंथ का प्रभाव तथा मराठी साहित्य में उसकी अभिव्यक्ति) संगोष्ठी के प्रथम सत्र में मुम्बई से पधारीं डाॅ0 दर्शना ओझा ने कहा -  मराठी साहित्य में नाथ संप्रदाय का प्रभाव दिखायी पड़ता है। गुरु के बिना मोक्ष सम्भव नहीं हैं। नाथ संप्रदाय में शिव की उपासना का महत्व है। नाथ पंथ योग मार्ग को प्रशस्त करता है। योग मार्ग ही प्रशस्ति तथा भक्ति भावना का प्रसारवाद पंथ का मुख्य उद्देश्य रहा है। नाथ पंथ के अनुसार शिव ही सत्य है।अनादि अविनाशी है। अहिंसा नाथ पंथ का प्रमुख तत्व है। नाथ पंथ वाह्य आडम्बरों से मुक्ति तथा भक्ति मार्ग से जोड़ने का कार्य करता है। नामदेव का मराठी साहित्य में प्रमुख स्थान है। 
 संगोष्ठी के प्रथम सत्र में भुवनेश्वर से पधारे डाॅ0 अजय कुमार पटनायक 'दक्षिण एवं दक्षिण पूर्व भारत में नाथपंथ का प्रभाव' विषय पर (उड़ीसा में नाथपंथ का प्रभाव तथा उड़िया साहित्य में उसकी अभिव्यक्ति) ने कहा -  उड़ीसा के नाट्य साहित्य में नाथ प्रदाय का साहित्य मिलता है। महाभारत में भी नाथ पंथ की आध्यात्मिक, एवं दर्शन तत्वों का वर्णन मिलता है। शिशुवेद नाथ पंथ का प्रमुख ग्रंथों में से एक है। उड़ीसा साहित्य में  नाथाचार्यों के बारे में  विस्तृत वर्णन मिलता है। उड़िया साहित्य में अष्टांग योग का सुन्दर वर्णन है। उड़ीसा में उड़िया गोरख संहिता का विशेष महत्व है जिसके माध्यम से उनके विचारों का प्रसार हुआ है। गोरखनाथ जी ने अपनी आध्यात्मिक शक्तियों के बल पर अपने गुरु से भी ऊपर है। उड़ीसा में लगभग 40 हजार नाथपंथी पाये जाते है।
     अध्यक्षीय सम्बोधन में डाॅ0 वाचस्पति मिश्र,  अध्यक्ष, संस्कृत संस्थानम, लखनऊ ने कहा-एक समय रहा होगा जब आध्यात्मिक क्षेत्रों की चर्चा गोरखनाथ के बिना अधूरी समझी जाती है। सामान्य व्यवहारिक जनजीवन में योगी गोरखनाथ जी की बड़ी चर्चा रही है। भारतवर्ष गृहस्थ योगियों की संख्या काफी रही। गोरखनाथ जी के विचारों का प्रभाव वृहत्तर भारत मंें रहा है। गोरखनाथ जी का प्रभाव उनकी प्रांसगिकता भारतवर्ष में निरन्तर बनी रहेगी। 
 प्रथम सत्र का संचालन डाॅ0 अलका पाण्डेय ने किया।



द्वितीय सत्र
 संगोष्ठी के द्वितीय सत्र में कोलकाता से पधारे डाॅ0 अरुण होता पूर्वी एवं पूर्वोत्तर भारत में नाथपंथ का प्रभाव (बंगाल में नाथपंथ का प्रभाव तथा बांग्ला साहित्य में उसकी अभिव्यक्ति) विषय पर बोलते हुए ने कहा - जहाँ से बांग्ला साहित्य का आदि पर्व शुरु होता है वही पर नाथ साहित्य का प्रभाव दिखायी देता है। हजारी प्रसाद द्विवेदी ने लिखा है कि उन्हें लगता है कि नाथपंथ साहित्य से कोई साहित्य बचा हो। पश्चिम बंगाल में मुस्लिम साहित्यकारों ने भी नाथ साहित्य की प्रसिद्ध रचना की है। नाथपंथ साहित्य लोकजन मन के माध्यम से समाज में प्रसारित हुआ। शशिभूषण दास गुप्त ने लिखा है नाथ साहित्य मनोचिकित्सीय दृष्टिकोण से अध्ययन करना चाहिए। बांग्ला नाथ साहित्य लोक में जीवित हैं। पश्चिम बंगाल में कोई ऐसी जगह नहीं है जहाँ नाथ का मठ व मन्दिर न हों। नाथ संप्रदाय ने किसी से समझौता नहीं किया। नाथ साहित्य जन-जन में व्याप्त हैं।
 संगोष्ठी के द्वितीय सत्र में त्रिपुरा से पधारे डाॅ0 पार्थ सारथी ने पूर्वी एवं पूर्वोत्तर भारत में नाथपंथ का प्रभाव (त्रिपुरा में नाथपंथ का प्रभाव तथा स्थानीय साहित्य में उसकी झलक) विषय पर बोलते हुए ने कहा -  त्रिपुरा में शिलालेखों में नाथ संप्रदाय के बारे में उल्लेख मिलता है। त्रिपुरा में नाथ सम्प्रदाय का इतिहास भी मिलता है। नाथ सम्प्रदाय का प्रभाव त्रिपुरा में प्राचीनकाल से रहा है। त्रिपुरा साहित्य मिलता है कि संध्या के समय तीन नाथों का स्मरण करें, जिससे लाभ मिलता है। त्रिपुरा में पुराणों में भी नाथ संप्रदाय का उल्लेख है। नाथ संप्रदाय में खुद को जानने के लिए योग का सहारा लिया जाता है। त्रिपुरा में शिव पार्वती की भव्य प्रतिमाएँ मिल जाती हैं। 
 संगोष्ठी के द्वितीय सत्र में असम से पधारे डाॅ0 ए0के0 नाथ पूर्वी एवं पूर्वोत्तर भारत में नाथपंथ का प्रभाव (असम में नाथपंथ का प्रभाव) विषय पर बोलते हुए ने कहा -  असम में जहाँ तंत्र मंत्र है वहाँ नाथ साहित्य है। शून्य को शिव माना गया है। असम में नाथ राजाओं के बारे में उल्लेख कम मिलता है। गोरखनाथ की बानी का अनुवाद असमिया भाषा में किया गया है। असम में नाथों की संख्या बहुतायत में है। वे शिव की उपासना करते हैं। वहाँ पर एकशैव को विश्वास में रखते हैं। शैव संस्कृति सबसे प्राचीन संस्कृति है असम में आज नाथ सम्प्रदाय अपनी पहचान बनाये रखने के लिए काफी सचेत होते जा रहे है। लोक कथाओं मंें नाथ संप्रदाय जीवित हैं।
 संगोष्ठी के द्वितीय सत्र में वाराणसी से पधारे डाॅ0 कृष्णकांत शर्मा पूर्वी एवं पूर्वोत्तर भारत में नाथपंथ का प्रभाव (पूर्वोत्तर भारत में नाथपंथ का प्रभाव तथा स्थानीय साहित्य में झलक) विषय पर बोलते हुए ने कहा - असम में नाथ संप्रदाय का प्रभाव है। असम का प्राचीन नाम का स्वरूप है। नाथों में आदिनाथ  प्रथम हैं। वे ही शिव के रूप में माने जाते हैं। नाथ संप्रदाय के ग्रंथांे को सिद्धान्त गं्रथ कहा जाता है। योग साधना नाथ संप्रदाय की प्रमुख पद्धति थी। असम व त्रिपुरा में गोरखनाथ व शिव के मन्दिर है उनके अनुयायी बहुत संख्या मंे हैं। 
     अध्यक्षीय सम्बोधन में चण्डीगढ़ से पधारे डाॅ0 जयप्रकाश, सुप्रसिद्ध साहित्यकार ने कहा-नानक वाणी में नाथ संप्रदाय का व्यापक प्रभाव परिलक्षित होता है। मध्यकाल की साधना पद्धतियाँ सरल नहीं हैं। शिव की महिमा व उनके रूप को समझना सम्भव नहीं है। भारतीय साधना, संस्कृति को समझ पाने में हमारी बुद्धि समझाने में समर्थ नहीं हो पा रही है। लोक श्रुतियों में निहितार्थ तत्व कल्याणकारी होता है। उपासना के लिए हमें विभिन्न शक्तियों के अध्ययन हेतु बिन्दुत्व प्रतीकों को बनाना होता है। 
 प्रथम सत्र का संचालन डाॅ0 अमिता दुबे, सम्पादक, उ0प्र0 हिन्दी संस्थान ने किया।