मंदी 2008 और वर्ष 2019 की मंदी में एक बडा फर्क
 लम्बे समय तक औद्योगिक अती उत्पादन आर्थिक मंदी के लिए प्रेषित करता है .. लगभग विश्व की सभी आर्थिक महाशक्तियां मंदी से जूझ रही हैं .. ज्यादतर सभी सरकारें मंदी से उबरने के लिए ज्यादा से ज्यादा पैसा लोगों में बांटना चाहतीं हैं ताकि लोग सस्ता ॠण लेके.. फिजूल की खरीदारी करें और जिससे काल्पनिक डिमांड बनाईं जा सके ..सरकारौ का मानना है कि काल्पनिक डिमांड से  .. बंद पडी फैक्ट्रीयौ का चक्का फिर से चल पडेगा ..और गिरती जा रही जी.डी.पी फिर से राह पकड़ लेगी..

मगर सस्ता ॠण व पैसा बांटने के लिए सरकारौ के पास मूलतः दो ही तरीके हैं ...या तो केंद्रीय रिजर्व बैंक अपने रिजर्व में से पैसे निकाले.. स्टैटचयूरी मानकौ में ,जैसे कि crr..slr.. मै छूट दे जिससे कि  .. बैंकौ में ॠण बांटने के लिए ज्यादा पैसा इकट्ठा हो जाये.. केंद्रीय बैंक सस्ते रेट पर अपने आधीन बैंकौ को ॠण उपलब्ध कराये ..जिससे की वो आगे लोगों को सस्ते रेट पर दे पाये...

         मगर एसा करने से हम अपनी बैंकौ को सहज ही कमजोर कर रहे होंगे

विगत वर्ष 2007 में जब जबरदस्त मंदी आई थी और अमेरिका व यूरोप की बडी बडी बैंकै जैसे कि लेहमन ब्रदर्स .. गोल्ड सैक  बैंक ..व अन्य .. धराशायी हो गई क्योकि इन बैंकौ ने रिजर्व फंड नहीं रखा था.. .. तभी से बैंकौ ने Basel norms का गठन किया था .. और स्टैटचयूरी रिजर्व जैसे कि crr..slr.. अनिवार्य हो गया था

 

दूसरा तरीका है कि रिजर्व बैंक करंसी नोटौ की छपाई करे  और फिर छपे नये करंसी को बाजार में बैंकौ के द्वारा फेंके..

मगर बाजार में बहुतायत में पैसा आने से महंगाई अचानक से बढ जाने की आशंका रहती है ..दूसरा करेंसी प्रिंटिंग से .. घरेलू करेंसी की कीमत डालर के मुकाबले गिर जाती है.. जिससे कि आयात किया हुआ उत्पात महंगा हो जाता है जैसे कि कच्चा तेल ..

बाजार में बहुतायत में पैसा आने पर सबसे पहले रोजमर्रा के इस्तेमाल में आनी वाली वस्तुयें जैसे कि खानपान में आने वाली वस्तुयें के दामों में बढ़ोतरी हो जाती है ..

 

चूंकि बढी हुई डिमांड को नीचे पहुँचने में समय लगता है तो .. मंहगाई के साथ बेरोजगारी भी बढती है

 

लेकिन वर्ष 2008 की मंदी और वर्ष 2019 की मंदी में एक बडा फर्क है ...

 

मुझे आज भी याद है वर्ष 2008 में मंदी से निपटने के लिए बाजार में फेंके गए पैसे से जब अचानक आई मंहगाई की रोकथाम में तत्कालीन सरकार पूरी तरह से फेल होगई ... तबके RBI गवर्नर ने बार-बार ब्याज दर बढा कर.. तो कभी crr व slr की दरें बढ़ा कर... मंहगाई को काबू में करने की बहुत कोशिश की पर  असफल रहे ..  वजह थी लोगों के पास उपलब्ध बेहिसाब  कैश.. जिसके आंकड़े की सही जानकारी किसी सरकार या उसकी किसी एजेंसी को नही थी और यही वजह थी कि चाह कर भी सरकार का कोई भी उपाय काम नही कर रहा था

 

मगर हमैं धन्यवाद देना चाहिये नोट बंदी का जिसने देशभर में उपलब्ध कैश को उजागर किया .. और जोकि बैंक के द्वारा मेन सिस्टम में आया .. और सरकार को बाजार में  उपलब्ध पैसे की सही सही जानकारी हो पाई.. और यही वजह है कि इस बार सरकार जो भी कदम उठायेगी उसका सीधा व अपेक्षित परिणाम जमीनी स्तर पर आएगा ।