विदेशी चंदा अधिनियम-2010 का हवाला देते हुए विदेशों से प्राप्त चंदे का हिसाब-किताब न दे पाने वाले कुल 8975 गैर-सरकारी संगठनों का लाइसेंस रद्द






भारत सरकार के गृह मंत्रालय ने विदेशी चंदा अधिनियम-2010 का हवाला देते हुए विदेशों से प्राप्त चंदे का हिसाब-किताब न दे पाने वाले कुल 8975 गैर-सरकारी संगठनों का लाइसेंस रद्द कर दिया है।
दरअसल, भारत सरकार को जानकारी मिली थी कि देश में कई ऐसे गैर-सरकारी संगठन सक्रिय हैं, जो कहीं न कहीं विदेशी चंदा अधिनियम की अनदेखी करके धन ले रहे हैं एवं उस धन का दुरुपयोग कर रहे हैं। इसके पहले सीबीआई भी सर्वोच्च न्यायालय को एक हलफनामे में बता चुकी है कि महज 10 फीसदी एनजीओ ही उचित ढंग से अपनी रिपोर्ट दे रहे हैं।
नयी सरकार आने के बाद गैर-सरकारी संगठनों पर सख्ती की शुरुआत गृह मंत्रालय द्वारा अक्तूबर 2014 में ही कर दी गयी थी। गत 16 अक्तूबर, 2014 को गृह मंत्रालय द्वारा कुल 10343 गैर-सरकारी संगठनों को वर्ष 2009 से लेकर 2012 तक मिले विदेशी चंदे का ब्योरा मांगा गया था। जवाब के लिए तय एक महीने की समय सीमा बीत जाने के बाद तक मात्र 229 गैर-सरकारी संगठनों ने इसका जवाब दिया। इसके बाद सरकार ने बाकी तमाम गैर-सरकारी संगठनों को आंकड़ा न उपलब्ध करा पाने एवं पारदर्शिता न रख पाने की वजह से बंद कर दिया है। दरअसल सरकार द्वारा जिन 8975 गैर-सरकारी संगठनों की पंजीयन मान्यता निरस्त की है अथवा अस्थायी तौर पर उन्हें प्रतिबंधित किया है, उनमें 'ग्रीनपीस इंडिया' नाम की पर्यावरण पर काम करने वाली एक संस्था भी है। इस संस्था का लाइसेंस भी आगामी 6 महीने के लिए निरस्त कर दिया गया है एवं भारत में स्थित इसके सभी खातों को 'फ्रीज़' कर दिया गया है। गृह मंत्रालय ने ग्रीनपीस इंडिया को विदेशी चंदा अधिनियम के तहत 'आंकड़े छुपाने' एवं आर्थिक विकास में बाधा डालने का दोषी पाया है।
दरअसल भारत में फोर्ड फाउंडेशन एवं ग्रीनपीस को लेकर हमेशा से यह चर्चा रही है कि इन संगठनों की कार्यप्रणाली देशहित में नहीं है। हालांकि ग्रीन पीस पर प्रतिबन्ध लगने के बाद इस संस्था ने इसे आपातकाल जैसा बताया है और खुद अमेरिका ने भी इस मामले को संज्ञान में लिया है। ग्रीनपीस ही नहीं बल्कि सरकारी डंडे की जद में बहुचर्चित फोर्ड फाउंडेशन भी आ गया है। अगर बारीकी से मामले को देखा जाये तो फोर्ड फाउंडेशन पर सरकार को सख्त निगरानी बहुत पहले रखी जानी चाहिए थी, लेकिन न जाने क्यों पिछली संप्रग सरकार ने फोर्ड फाउंडेशन को भारत में बिना किसी निगरानी के काम करने और पैसा देने की खुली छूट दे रखी थी।
इसमें कोई शक नहीं कि अगर कोई बाहरी कम्पनी अथवा संस्थान भारत में किसी भी उद्देश्य से धन खर्च कर रहा हो तो इसकी जानकारी भारत सरकार को सबसे पहले दी जानी चाहिए। सरकार को बिना आंकड़ा दिए सभी तरह की निगरानी से मुक्त अगर कोई विदेशी पैसा देश में आ रहा है तो इस बात का खतरा हमेशा रहता है कि गाहे-बगाहे उस पैसे का इस्तेमाल देश के खिलाफ होने वाली गतिविधियों में भी हो सकता है। अगर वाकई कोई संगठन अथवा संस्था कुछ बेहतर कर रही है तो उसे अपने चंदे का आंकड़ा देने में क्या हर्ज होना चाहिए?
दरअसल, भारत में एनजीओ कल्चर सेवा का नहीं बल्कि कमाई का भी जरिया है। फोर्ड फाउंडेशन पर भी निगरानी का निर्देश गुजरात सरकार की एक रिपोर्ट के आधार पर दिया गया है। गुजरात सरकार ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है, 'फोर्ड फाउंडेशन ने भारत में एक ऐसे संस्थान को समर्थन दिया है जो सामाजिक पक्षपाती रवैये के साथ सांप्रदायिक तनाव भड़काने की रणनीति पर काम करता है। फाउंडेशन ने सबरंग ट्रस्ट को 2,50,000 डॉलर और एससीपीपीएल को 2,90,000 डॉलर चंदे के तौर पर दिए हैं।
सरकार को मिली आईबी की रिपोर्ट के मुताबिक ग्रीनपीस के कामकाज पर सवाल उठना लाजिमी है। रिपोर्ट के मुताबिक ग्रीनपीस इंडिया ने ट्रबल ब्रेविंग ऑन इंडियन टी नाम से एक रिसर्च पेपर जारी किया था। इस रिसर्च पेपर में दावा किया गया है कि देश के कई ब्रांड्स की चाय में खतरनाक कीटनाशक मौजूद हैं। जिन चाय के ब्रांड्स का जिक्र ग्रीनपीस ने किया वे अमेरिका, ब्रिटेन और यूरोप में निर्यात होते है। आईबी की रिपोर्ट में यह बात सरकार तक पहुंची है कि ग्रीनपीस इंडिया द्वारा भारत में चाय के कारोबार को अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर बदनाम करने की बेजा कोशिश की जा रही है।
सरकार अगर इस समस्या से निपटने और एनजीओ तंत्र के मनमानेपन पर लगाम लगाने की कोशिश कर रही है तो इसका स्वागत किया जाना चाहिए। हालांकि कुछ लोग जिन्हें इस फैसले से नुकसान है, वे इसे अलोकतांत्रिक आदि बताकर जरूर आलोचना की कोशिश करेंगे।


 

 


 



 



 















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