सौराष्ट्र गुजरात के सोनगढ़ ग्राम के आध्यात्मिक जैन दिगम्बर सन्त पूज्य गुरुदेवश्री कानजीस्वामी तथा प्रशममूर्ति बहेनश्री चंपाबेन के पुण्य प्रताप से अध्यात्म की अद्भुत प्रभावना हुई है और देश-विदेश में हजारों स्वाध्याय केन्द्रों के साथ अनेक जिनमन्दिरों का निर्माण हुआ है। इन केन्द्रों में लाखों साधर्मी मुमुक्षु जिनेन्द्र भक्ति पूजा के साथ आत्मकल्याण के मार्ग में संलग्न हैं।
दिगम्बर जिनबिम्ब पंच कल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव जैन समाज का सर्वाधिक गरिमापूर्ण महोत्सव है। इस महोत्सव में अपने आराध्य तीर्थंकर भगवन्तों के जीवन की प्रमुख पाँच घटनाओं का प्रदर्शन करते हुए उन्हें प्रतिष्ठा पाठ के उल्लेखानुसार मंचन किया जाता है। ये महोत्सव आत्मा से परमात्मा बनने की प्रायोगिक विधि सिखलानेवाले होते हैं। इसके अतिरिक्त हम स्वयं भी आत्मसाधना करके परमात्मदशा को प्राप्त कर सकते हैं - इस बात का परिज्ञान भी इस महोत्सव से होता है।
जैन धर्मावलम्बी भी तीर्थंकरों की तदाकार मूर्तियाँ जिनमन्दिरों में प्रतिष्ठापित करते हैं, स्थापित करते हैं। जब कभी नवीन जिनमन्दिर का निर्माण होता है तो उस जिनमंदिर में जिनबिम्बों की स्थापना होती है। जिनमन्दिरों में विराजमान जिनबिम्बों का अपना एक अलग महत्व है। लाखों जैन धर्मावलम्बी इन जिनबिम्बों के दर्शन के बिना पानी भी ग्रहण नहीं करते। ये जिनबिम्ब जैन संस्कृति के प्रतीक ही नहीं, संरक्षक भी हैं। पाषाणों में उत्कीर्ण या धातुओं में ढले ये वीतरागी जिनबिम्ब तब तक पूजने योग्य नहीं माने जाते, जब तक कि उनकी विधिपूर्वक प्रतिष्ठा नहीं हो जाती। इसी प्रतिष्ठा विधि को सम्पन्न करने के लिये जो महोत्सव होता है, उसे पंच कल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव कहते हैं।
यह पंच कल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव आत्मा से परमात्मा बनने की प्रक्रिया का महोत्सव है। इस महोत्सव में गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान और मोक्ष सम्बन्धी क्रिया-प्रक्रियाओं के माध्यम से आत्मा से परमात्मा बनने की प्रक्रिया का प्रदर्शन होता है, विद्वानों के प्रवचनों के माध्यम से समागत श्रद्धालुओं को आत्मा से परमात्मा बनने की विधि बतायी जाती है। विश्व के समस्त दर्शनों में जैनदर्शन ही एक ऐसा दर्शन है जो यह कहता है कि प्रत्येक आत्मा स्वयं परमात्मा है। यह अपना यह आत्म, स्वभाव से परमात्मा है ही, यदि स्वयं को जाने, पहिचाने और स्वयं में रमण करे तो प्रकट रूप से पर्याय में भी परमात्मा बन सकता है। जैनदर्शन मात्र नर से नारायण बनानेवाला दर्शन नहीं, अपितु पशु से परमेश्वर बनाने वाला वीतरागी दर्शन है। पंच कल्याणक वे महान क्रान्तिकारी घटनायें हैं, जो प्रायः प्रत्येक तीर्थंकर के जीवन मंे घटित होती हैं और उनके परमकल्याण का कारण बनती हैं।
इसी क्रम में भारत की आर्थिक राजधानी मुम्बई के उपनगर विलेपार्ले में एक विशाल जिनमन्दिर श्री कुंदकुंद-कहान दिगंबर जैन मुमुक्षु मंडल ट्रस्ट विले पार्ले-सांताक्रूझ के अंतर्गत बनकर तैयार हुआ है। लगभग २0000 वर्गफुट के बांधकाम में यह जिनमन्दिर पाषाण शिल्पकला का उत्कृष्ट उदाहरण है। स्थानीय मुमुक्षु साधर्मियों के समर्पण एवं उत्साह से यह जिनमन्दिर 3 वर्ष के अल्प समय में बनकर तैयार हो गया है। यह सम्पूर्ण जिनमन्दिर संगमरमर के पाषाण से निर्मित है। इस जिनमन्दिर के भूतल पर अत्याधुनिक सुविधाओं सहित स्वाध्याय भवन बनाया गया है। इस जिनमन्दिर में भगवान सीमन्धरस्वामी की 79 इंच की मनोहारी धवल पाषाणमय प्रतिमा विराजमान होगी। जिनमन्दिर पर पूज्य गुरुदेवश्री कानजीस्वामी की साधनाभूमि सोनगढ़ की प्रतिकृति की अद्भुत रचना की गयी है। जिनमन्दिर के तलघर में विशाल स्वाध्याय कक्ष और जिसमें पूज्य श्री कानजीस्वामी की साद्रश्य प्रतिकृति विराजमान की जायेगी। सम्पूर्ण जिनमन्दिर शिल्पकला का बेमिसाल उदाहरण है।
जिनमन्दिर श्री कुंदकुंद-कहान दिगंबर जैन मुमुक्षु मंडल ट्रस्ट विले पार्ले-सांताक्रूझ के अंतर्गत बनकर तैयार