" मम्मी , सुमन ठीक ही बोल रही है, तुम भी थोड़ा अब एडजेस्ट किया करो न .... " बेटे की आवाज़ थी !
मेरा ध्यान आजकल पढ़ने लिखने में कम ही लग रहा था ! कुछ चल रहा था घर मे जिसे मैं तो समझ रहा था पर इसे भारी पड़ रहा था ! पैंतीस साल से गृहस्थी संभाली इसने, एकछत्र राज्य ! हर बात में फाइनल डिसीज़न इसका !
डेढ़ महीना हुआ बेटे के घर आये , शुरू में तो बहु और ये दोनों ख़ुश थे ख़ूब पटरी खा रही थी । रात को मुझे सब बताती .. क्या क्या इस घर मे अच्छा है , क्या अपने घर से भी अच्छा है और ... क्या उसे पसंद नहीं !
धीरे धीरे नापसंद चीज़ों और बातों की लिस्ट लम्बी होने लगी .. और इसकी नींदे छोटी ! समझ गया कि अब वापसी का टाइम आ रहा है पर ये तैयार नही थी .. बहु का घर सेट कर दूँ तो चलूं ! शायद कुछ ईगो भी भिड़ गया था !
जितनी नापसंदी की लिस्ट बढ़ने लगी सास बहू में बातचीत तीख़ी और सपाट होने लगीं ..चुभ जाए इतनी ।
ओलिम्पिक चल रहे थे टीवी पर ... सौ गुना चार रिले रेस का फाइनल लाइव आ रहा था , इसे पकड़ के बिठा लिया .. रेस देखो फिर एक ज़रूरी बात करनी है ।
मजबूरन और जिज्ञासावश बैठ गयी । रेस ख़त्म हुई , टीवी बंद कर आ बैठी मेरे सामने ..!
मैंने उसे इतना ही कहा कि रिले रेस में अगर स्मूथ बेटन पास न हो तो टीम के जितने की उम्मीद ख़त्म हो जाती है ... देखा तुमने ? बहु के साथ मत दौड़ो तुम दोनों की रेस नही है ये , दोनों एक ही टीम में हो !
अपने जूते थोपना मत ! वो तुम्हारे जूते पहन के नही दौड़ेगी ! ये ट्रेक गाँव की मिट्टी वाला मुलायम नही ! वो अपनी हिस्से की रेस अपने ढंग से पूरी करने तुम्हारे बेटे का हाथ पकड़ के दौड़ पड़ी है ,न रुकेगी और न पीछे मुड़ के देखेगी ।
उसमे ताकत , टेक्निक और स्टेमिना , सब तुमसे ज़्यादा है । दौड़ के तऱीके , ट्रेक सूट भी बदल गए हैं ! और ये मत भूलो कि आगे का ट्रैक भी ... उसी का है और इसलिये स्ट्रेटजी भी उसी की होगी !
तुम अपने हिस्से का दौड़ चुकी !
अब वक़्त हमारे आराम और मज़े से उसे दौड़ते जीतते देखने का है । चलो वहाँ ऊपर चल के बैठते है ... रेस हमेशा दूर से ही देखनी चाहिए , उसका मज़ा ही कुछ और है । इसने बस इतना ही कहा .." करवा लीजिये टिकट चलते हैं ".
चलो , मैं अपनी ये हंड्रेड मीटर तो जीत ही गया , आगे की रेफरी जाने !