लोकसभा चुनाव 2019 में का खेल नए राजनैतिक मेल के रूप में सामने आने को है। कल तक बीजेपी कांग्रेस पर दहाड़-दहाड़ कर चिल्लाती थी आज उसका उलटा हो रहा है। कांग्रेस ब्यान वीर दहाड़-दहाड़ कर चिल्लाते फिर रहे है चैकीदार चोर है! बीजेपी उलट कर जबाब भी नहीं दे पा रही हैं। कवि केदारनाथ अग्रवाल ने एक व्यग्य कविता लिखी थी-
धोबी गया घाट पर, राही गया बाट पर,
मै न गया घाट और वाट पर, बैठा रहा टाट पर
दोनों हाथ काट कर, जीता रहा ओस चाट-चाट कर।
वास्तव में बीजेपी ने अपने दोनों हाथ अपने ही हाथों काटे। बीजेपी की व्यकुलता अपने हाथ काटने के लिए इतनी अधिक थी कि जिस आक्रोष रूपी हथियार से अखेट किया वह अस्त्र कांग्रेस के हाथ में है। सत्ता सेतु पर संभल-सभल कर चलना होता है।जब एक बार जन के मन में साज और आवाज दृष्यांतर हो जाती है तो जीत का कोई मन्त्र काम नही करता है। हर ओर से एक आवाज आने लगी मोदीजी महगाई, पन्द्रह लाख का क्या हुआ भाई, कितनी रकम स्विस बैंक से आई, रफेल की दलाली कितनी मिल पाई ! भारतीय जनता पार्टी तथा आर.एस.एस. ने गहरी पड़ताल के बाद कई फारमूलों को कई बार टेस्ट करके एक कल्चर बनाया। इस कल्चर में हर समस्या का समाधान के बीच एक छोटा सा कमरा जिसमें रुखी सूखी हालत में मोदी की माँ इषारा करत 2014 में दिखी। अब कांग्रेस ने वही फारमूला कैलकुलेट किया पहले शिव भक्ति और फिर रामभक्ति दिखाई । कोलकता, पटना, बनारस, इलाहाबाद, लखनऊ, भोपाल, चंडीगढ़, नागपुर में मोदी के दागिस्तान रफेल डील वाले बताने भाजपा की तरह अपने नेता भेज कर उनका विकासस्तान का वैभव जनता के सर उत़ार कर अडानी,अंबानी की दागिस्तान जुगुलबन्दी ग्लोबलाईजेशन और लोकलाईजेशन की मोहक धुन सुना दी। इस धुन को ध्वस्त करने के लिए भोपाल भी कुछ कमाल नहीं कर सका,शिवराज मामा की ललकार है कोई माई का लाल! सब लाल कुर्सी छोड़कर चले गये सारा पंडाल बता गया हाल, यही कुछ वाराणसी में हुआ हाल,गंगा मां रूठी,बात तुम्राहरी निकली झूठी।राहुल गाधी के साथ दृष्य रुप में प्रकट होता जनसैलाव को अपने आगोष में लेने में कामयाबी के कारण बीजेपी का घोड़ा ऐन दोपहरी में गुस्से में थरथराता हुआ हिनहिनाहट करने लगा। इस हिनहिनाहट में भोपाल,जयपुर,रायपुर हिल गया। अचानक फरमान आया गांधी का नाम न आये। मेक इन इण्डिया का जोर का ष्षोर चारो ओर थम चुका था। नया राग-विराग,तन-मन-धन सर्वस्व चढाने का ,इस मौसम में वेधडक बनारसी का गीत''नया राग छेड. दो चीन को खदेड दो,को रणभेरी के पेज नम्बर 138 से हटाने तक तो एक भी बनारसी भडका नहीं चलो नये संस्करण में नजीर बनारसी का गीत''मौत भी आए तो सीने से लगा सकाते है हम,तो मौजूद है।मित्रघात चीन की चुनोती का मुहं-तोड उत्तर देने वाली ओजस्वी कविताओं का नवीन संस्करण जो छप रहा हैइस छपाई के भी खेल निराले है कब किसे गायब कर दे डिजटिल इण्डिया के दौर में कहना कठिन है। नए जमाने के सावन में पुराने सावन की बहुत सी बाते यादगार बन गई है। बात ज्यादा पुरानी नही है। इसकी प्रेरणा मुझे बिरासत मेें मिली है। कल जब में कल्लू पंसारी के यहां तुकमलंगा लेने गया तो मैंने गंाधी छाप सौ का नेाट दे कर कहा बीस रूपये का तुकमलंगा बीस रूपये की नानखटाई दे दो, कल्लू पंसारी ने सौदा दे कर एक पचास का और एक दस का करारा नोट बापिस कर दिया करारा नोट देकर में चक्कर में पड गया। दस के नोट से गाधीजी गायब थे!ना तो उनका चश्मा दिख रहा था,न ही लाठी?मैंने कल्लू पंसारी से पूछा कितने में मिला? भड़क गया बोला मियां,देखते जाओ आगे होता है क्या-क्या!बड़ा जो गुमान बल,क्या होगा कल। गुजराती ही गुजराती को बाहर का रास्ता दिखा सकता है। रिजर्व बैंक आफ इण्डिया की ओर से छापे गये 10रूपये के नोट से राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की तस्वीर गायब है। गांधी की तस्वीर के बिना छपे इन नोटों को आरबीआई की वेबसाइट पर भी पोस्ट किया गया है। मैंने कल्लू पंसारी की खेाजी नजर को अपनी तौहीन समझ कर दावं चला भाई कल्लू ,समय बदल रहा है कभी तुमने एक रूपेय के नोट पर गाधीजी को देखा है कल्लू ने न में सिर हिलाया,बस फिर क्या था पिल गया नये नये तर्क देने भाई जैसे दो,पाचं केे नेाट पर गाधीजी के सम्मान के कारण नहीं छापा है उसी तरह अब दस के नोट से गाधीजी को गायब किया है।कल बीस,पचास,सौ रूपये की ताकत कम होने पर गाधीजी को नहीं छापा जायेगा। छापा शब्द सुनते ही कल्लू अपना आपा खो गया जोर जोर से चिल्लाने लगा इन्दिरा गाधी,राजीव गाधी को गायब किया चल गया गांधीजी को गायब करेगें तो खुद गायब हो जायेगें!आज दस रूपये के नोट से गाधी को गायब किया लेकिन कोई चैनल चू-चू तक नहीं कर रहा है जैसे मौन साध लिया हो ,हिम्मत बड़ी पांच सौ रुपये से गायब किया, अब खुद गायब हो जायेगे ।जनता मौन नहीं रहने वाली है वह तो बोलेगी गाधी के स्वराज पर सूट बूट की पोल खोलेगी।
भले ही दूर मंजिल पग नहीं रूकेगें हमारे,
कालिमा कितनी चमकेगें सत्य के सितारे।