चेखव की कहानी-

 


 


 


रूसी कहानी


पतझर में फूल नहीं खिलते
- चेखव


(एंटन पावलोविच चेखव का जन्म 29 जनवरी, 1860 को दक्षिणी रूस में हुआ। जीवन के कुल 44 वसंत देखे परंतु विश्व साहित्य को अनूठे उपहार दे गए। महज एक घंटे में उत्कृष्ट कहानी रचने की अद्भुत क्षमता व न्यूनतम शब्दों में विचार, कथ्य व दृश्य की भावपूर्ण प्रस्तुति में जादूगरी करने वाले रचनाकार)

पतझर की एक उदास, अंधेरी शाम. बूढ़ी प्रिंसेज प्रिकलोंस्की के घर निम्न घटना घट रही थी.
प्रिंसेज और उनकी बेटी बीस वर्षीया मारूस्या, नौजवान प्रिंस इगोर के सामने, रोती बिलखती हुई उसी तरह प्रार्थना कर रही थी, जैसे कोई पारिवारिक इज्जत बचाने के लिए, क्राइस्ट से करता है. इस बीच उन्होंने कई बार साहूकार प्यूरोव का जिक्र किया, जिससे उनके स्वर्गीय पति ने ऋण लिया था, ओर जो अब उनका मकान कुर्क कराने की धमकी दे रहा था. इसी के दौरान उनके मुँह से डॉ. तोपोर्कोव का नाम निकल गया.
डॉ. तोपोर्कोव प्रिंकलोंस्की परिवार के गले में हड्डी की तरह अटका हुआ था. उसका बाप उनके स्वर्गीय पति का ’वेलेट’ था. उसका मामा निकोफोर आज भी प्रिंस इगोर का ’वेलेट’ है, हालांकि प्रिंसेज ने यह तथ्य उससे छिपा रखा है. बचपन में खुद तोपोर्कोव चाय के बर्तन ठीक से साफ न करने के कारण, प्रिंस इगोर से पिट चुका है. और तब का गुलाम, वह लड़का आज एक नौजवान और प्रतिष्ठित डॉक्टर है. एक भव्य भवन में रहता है, शानदार कैरिज में चलता है, और जैसे प्रिंकलोंस्की परिवार को जलाने के लिए, कई बार उनके घर के सामने से गुजरता है.
”हर कोई उसकी इज्जत करता है,“ प्रिंसेज ने रोते हुए कहा, ”हर जगह उसका स्वागत होता है. वह सुदर्शन और धनी है. और एक तुम हो. आखिर उसकी चर्चा करने में शर्म की क्या बात है?“
”मैं उसे पसंद नहीं करता.“
”क्या इसलिए कि वह तुम्हारी तरह होड़ से शराब नहीं पीता. खराब लोगों में नहीं बैठता. सुबह से शाम तक अपने काम में व्यस्त रहता है. हे ईश्वर!“
प्रिंसेज मारूस्या, जो अंग्रेजी उपन्यासों की तरह सुंदर थी, भी अपने भाई से, पूरी शक्ति से अनुरोध कर रही थी. अपने भाई से अत्यंत प्रेम करती थी. उसका भाई जो कि एक रिटायर्ड हुसार अफसर था, उसकी नज़रों में पतित न होकर सत्य और सद्गुणों का अवतार था, जिसमें एक ऐसी पवित्र आत्मा निवास करती थी जिससे फरिश्ते भी ईष्र्या करें. वह उसे एक घोर असफल आदमी के रूप में देखती थी. प्रिंस इगोर उसे बहुत पहले विश्वास दिला चुका था, कि वह असफल प्रेम का गम गलत करने के लिए पीता है.
”जार्ज, मारूस्या ने अपने भाई के पियक्कड़ चेहरे को चूमते हुए कहा, “हमें मालूम है तुम क्यों पीते हो. अपने दुख को भुला दो. मजबूत बनो और लड़ो. एक हीरो बनो.”
इसके बाद मारूस्या ने तुर्गनेव के उपन्यास के नायक का जिक्र किया, जो जीरो से हीरो बना था.
बिस्तर पर पड़ा हुआ प्रिंस इगोर, सीलिंग को देख रहा था. अभी-अभी उसने अपने रसोइए से एक बोतल लाल शराब मँगा कर पी थी. इस समय वह तीन कोपेक का सिगार पीता हुआ दिवा स्वप्न देख रहा था. उसकी माँ और बहिन ने जो उपदेश दिये, उस पर वह नाराज़ था. साथ ही उसकी आत्मा में एक टींस उठ रही थी कि उसका परिवार , तबाही की ओर बढ़ रहा है, और इसके लिए वही जिम्मेदार है.
आखिरकार इगोर को उनसे भयंकर ऊब होने लगी. उसने जमुहाई ली और कहा, “ठीक है. अब मैं सुधर जाऊंगा...”
“एक जेंटिलमैन का वचन?”
“अगर इससे हटूं तो ईश्वर मुझे दंड दे. अगर अपना जीवन नहीं बदलता तो मुझे तब तक पीटना, जब तक मर न जाऊँ.“
जहाँ अगाध प्रेम हो, वहाँ अगाध विश्वास होता है. माँ बेटी ने उसका विश्वास कर लिया. यहाँ तक कि वे उम्मीद करने लगीं कि इसके बाद प्रिंस इगोर किसी सुंदर महिला से विवाह कर लेगा जो धनी होगी, क्योंकि वह सुंदर शिक्षित और व्योहारकुशल है. उससे काई भी महिला प्रेम कर सकती है. इसके बाद बूढ़ी प्रिंसेज अपने गौरवशाली पुरखों का बखान करने लगी. उनके एक पुरखे राजदूत थे, जो सभी योरोपीय भाषाओं के जानकार थे, उनके पति स्वयं एक रेजीमेंट के कमांडर थे. और उनका बेटा क्या बनेगा?”
“तुम देखना तो वह क्या बनता है.” प्रिंसेज मारूस्या ने कहा.
सोने के पहले वे देर तक सुनहरे भविष्य के सपने देखती रहीं. फिर सो गईं.
Û Û
अगली सुबह तीन बजे प्रिंसेज की पोर्च में एक कैब रुकी, जिसमें ’अदेर चेतू बार’ का बेयरा बैठा हुआ था. इगोर की देह को बाहों में उठाए. इगोर बेहोश था. कोचवान ने बॉक्स से उछल कर घंटी बजाई. निकोफोर और रसोइया बाहर निकले. उन्होंने कैब का किराया चुकाया, और प्रिंस को सीढ़ियों से ऊपर ले गए. बूढ़े निकोफोर ने, जो न चकित था, न डरा हुआ, प्रिंस के कपड़े उतार बिस्तर पर लिटाया और कंबल उढ़ाया.
लगभग ग्यारह बजे जब प्रिंसेज और मारूस्या ड्राइंग रूम में काफी पी रही थीं निकोफोर अंदर आया और झिझकता हुआ बोला, “प्रिंस की हालत ठीक नहीं. लगता है जैसे मर रहे हों... सुबह हिज हाइनैस प्रसन्न चित्त लौटे और अब करवटें बदलते हुए कराह रहे हैं.”
माँ बेटी तुरंत इगोर के कमरे में पहुँचीं. उसका शरीर हरा-नीला पड़ा हुआ था. मूछें रक्त से भीगी हुई थीं, ऊपर के दो दाँत टूटे हुए थे.
माँ बेटी घुटनों के बल झुक कर सुबकने लगीं.
इसके लिए हम जिम्मेदार हैं मामा! हमें उसे इतना भला बुरा नहीं कहना चाहिए था. वह बहुत संवेदनशील है.“
इस बीच रसोइया एक डॉक्टर को बुला लाया. डॉक्टर ने इगोर की नाड़ी देखी. कमरे की हवा सूंघी. और गहरी साँस लेकर भौंहें सिकोड़ी.
”चिन्ता न करें योर हाइनैस! मैं नहीं समझता कि आपका बेटा खतरे में है.“
लेकिन मारूस्या से उसने कुछ और कहा, ”मैं कुछ नहीं कह सकता प्रिंसेज... सब कुछ चांस पर छूटा हुआ है.“
डॉक्टर ने फीस के तीन रूबल लिए, धन्यवाद दिया और चलता बना.
जब इगोर को कोई फायदा न हुआ तो माँ बेटी की राय बनी कि किसी बड़े डॉक्टर को दिखाया जाए. रसोइए को डॉ. तोपोर्कोव के पास दौड़ाया गया. जो उस समय घर पर नहीं था. रसोइया चिट्ठी छोड़ कर लौट आया. काफी इंतज़ार के बाद एक शानदार ’कैलेश’ पोर्च में रुकी. डॉ. तोपोर्कोव ने अपने आने की सूचना दी, और बिना किसी अभिवादन किए, बिना किसी ओर देखे, सीधा मरीज के पास पहुँचा. डॉक्टर हर तरह से सुंदर, सुडौल और सजीला था. लेकिन चेहरा सपाट और भावहीन जैसा अत्यधिक काम करने वालों का होता है.
”इसे बचा लें डॉक्टर. आप हमारी आखिरी उम्मीद हैं.“ मारूस्या ने अपनी बड़ी-बड़ी आँखें उसके चेहरे पर टिकाते हुए कहा.
“खिड़कियां खोल दो, मरीज काहे में साँस लेगा?“ डॉक्टर ने कहा.
लेकिन खिड़कियों में पल्लों की जगह गत्ते ठुके हुए थे.
”हमारे यहाँ खिड़कियां नहीं डॉक्टर.“ प्रिंसेज ने सकुचाते हुए जवाब दिया.
”तो इसे हॉल में ले चलो.“
बड़ी मुश्किल से इगोर के बिस्तर को उठा कर हॉल में पियानो के बगल में लगाया गया. जाँच के बाद डॉक्टर ने घोषणा की, ”नशे का ज्वर.“
दवा का पर्चा लिखने के बाद, उसने इगोर का सरनेम पूछा.
”प्रिंस प्रिकलोंस्की.“ प्रिंसेज को बुरा लगा कि वह अपने पूर्व-मालिकों को इतनी जल्द भूल गया. ”डॉक्टर ये खतरे में तो नहीं?“
”मेरे ख्याल से नहीं.“
डॉक्टर गया तो माँ बेटी ने चैबीस घंटे बाद चैन की साँस ली. डॉक्टर ने नई उम्मीद दी थी.
उसी शाम, मारूस्या को सर्दी ने जकड़ लिया. इसके बाद तेज ज्वर और पसलियों में असह्य दर्द. डॉक्टर अगले दिन सुबह नौ बजे आया. अब उसे दो मरीजों का इलाज करना था. मारूस्या के फेफड़ों में सूजन थी.
”ये ठीक तो हो जाएगी न डॉक्टर?“ पिं्रसेज ने पूछा.
”मैं नहीं जानता. मैं कोई संत नहीं. कुछ दिनों बाद पता चलेगा.“
जिस रुखाई से ये शब्द बोले गए थे, उससे प्रिंसेज का दिल टुकड़े-टुकड़े हो गया. और जब मारूस्या के चेहरे पर लालिमा लौटने लगी तो उन्हें लगा कि ये उसका अंत है और बेहोश हो गई. लेकिन सातवें दिन जब मारूस्या पहली बार मुस्कुराई उनके हर्ष का अंत न था.
”अब मैं स्वस्थ हूँ मामा.“ मारूस्या ने कहा.
उसी दिन इगोर भी उसके पास हँसता हुआ पहुँचा. अगले दिन डॉक्टर आया तो प्रिंसेज ने उससे कहा, ”आपने मेरे बच्चों को जीवनदान दिया इसके लिए आभार.”
“हम्म! क्या?”
“मैं आपकी कृतज्ञ हूँ, मेरे बच्चों को बचा लिया.”
“मुझे पाँचवे दिन इसकी उम्मीद थी. कल शाम को मैं फिर आऊँगा.”
( 2 )
एक गुनगुना, पारदर्शी दिन. खुशनुमा मौसम. खिड़की पर बैठे इगोर और मारूस्या डॉक्टर का अंतिम बार इंतज़ार कर रहे थे. आह्लाद से भरे हुए. उन्हें नया जीवन मिला था.
“एक सर्वशक्तिमान व्यक्ति जार्ज, जो प्रकृति से लड़ता और जीतता है.” मारूस्या ने कहा.
इगोर ने आँखें झपका कर अपनी बहिन का समर्थन किया. अब वह तोपोर्कोव का आदर करने लगा था. उनके बगल में बैठी माँ का चेहरा खुशी से दमक रहा था. वह उसकी योग्यता से उतनी प्रभावित नहीं थीं, जितनी उसकी सौम्यता से. किसी कारण से बूढ़े सौम्यता बहुत पसंद करते हैं.
“लेकिन दयनीय है तो इसलिए कि निचले वर्ग से है.” माँ ने कहा, “उसका पेशा भी साफ सुथरा नहीं. हर वक्त इसके-उसके पास दौड़ते रहना.”
मारूस्या का चेहरा तमतमा उठा. वह माँ के पास से उठ कर दूसरी कुर्सी पर बैठ गई. इगोर को भी माँ की टिप्पणी अच्छी नहीं लगी.
“आज के समय में मामा, जिसके भी कंधे पर एक सिर है और जेबें भरी हुई हैं वही कुलीन है. मैं डॉक्टर जैसा सिर और भरी हुई जेबें पाने के लिए अपनी ’प्रिंस’ की उपाधि छोड़ने को तैयार हूँ.”
खोखले पुरातन मूल्यों से जकड़ी हुई माँ सफाई देने लगी...
तोपोर्कोव शाम को आया. उसने इगोर से कहा, “शराब मत पियो. अतियों से बचो. अपने लीवर का ख्याल रखो.”
इसके बाद उसने मारूस्या को स्वास्थ्य टिप्स दिए. उसने सिर्फ चार मिनिट लिए. बत्तख की चाल चलती हुई माँ उसके पास पहुँची और उसका हाथ पकड़ कर बोली, “मुझे धन्यवाद देने की इज़ाजत दें डॉक्टर...” और उसने उसके हाथ में कुछ नोट रख दिए. डॉक्टर ने उंगली में थूक लगा कर नोटों को गिना और जेब के हवाले किया. (एक दिन पहले निकोफोर का प्रिंसेज के कंगन और ब्रेसलेट लेकर जाना अकारण नहीं था.) सहसा माँ के मन में उसके प्रति एक करुण भाव उपजा- ’बेचारा लावारिस! दुनिया में अकेला.’
“डॉक्टर, क्या आप हमारे साथ एक कप चाय पीना पसंद करेंगे. हमें खुशी होगी.”
“एक कप चाय पी लूंगा.”
तोपोर्कोव दस मिनिट तक लगातार पियानो के पैडलों को देखता रहा. बिना कुछ बोले, बिना कोई हरकत किए. आखिरकार ड्राइंग रूम का दरवाज़ा खुला और निकोफोर एक ट्रे के साथ उपस्थित हुआ. तोपोर्कोव गिलास उठा कर चाय पीने लगा.
“क्या आपको यहाँ अच्छा नहीं लगा?” प्रिंसेज ने पूछा.
“बहुत अच्छा लगा.”
“क्या यह सच है कि धूम्रपान से सेहत को नुकसान होता है?” इगोर ने पूछा.
“सिगरेट में निकोटीन होता है. जिससे अंत में टी. बी. हो जाती है.”
इसके बाद मारूस्या पियानो पर बैठ कर एक धुन बजाने लगी.
“ये महान संगीतज्ञ चेमिन की रचना है.” प्रिंसेज ने कहा, “मेरी बेटी अद्भुत गायिका है. मेरी अपनी शिष्या. कभी मैं संगीत की प्रोफेसर हुआ करती थी.”
ठसके बाद मारूस्या ने ’वाल्ज’ की एक धुन बजाई प्रभाव के लिए डॉक्टर का चेहरा देखा, जो हमेशा की तरह निर्भाव था. और तेजी से अपनी चाय खत्म कर रहा था.
“मुझे इस धुन से बहुत प्रेम है.” मारूस्या ने कहा.
“धन्यवाद. अब और नहीं.”
उसने टोप उठाया और खड़ा हो गया..और दरवाज़े की ओर बढ़ गया.
वह गया तो प्रिंसेज ने मारूस्या से कहा, “तुम्हें उसके लिए पियानो नहीं बजाना चाहिए था.”
“लेकिन वह कितना बुद्धिमान है.”
“लेकिन एक गुलाम. निकोफोर का भानजा.”
इसके बाद तीनों उसे अपनी शानदार कैरिज में जाता देखते रहे.
Û Û
पहला हिमपात, फिर दूसरा, फिर तीसरा. प्रिंकलोंस्की परिवार का जीवन यथावत चल रहा था. लेकिन उनकी आर्थिक स्थिति दिन ब दिन बिगड़ती जा रही थी. प्रिंसेज के सारे जेवर गिरवीं रखे जा चुके थे. नौकरों की तनख्वाह चढ़ी थी. इगोर पहले की तरह ऐयाशी का जीवन जी रहा था. मारूस्या के लिए कोई योग्य वर नहीं तलाशा गया था. रुपया पानी की तरह बह रहा था. प्रिंसेज को भविष्य अब आशान्वित नहीं, आतंकित करता था. इगोर अब दूसरों से उधार लेकर पीने और जुआ खेलने लगा था. उसके परिचित अब उसके मुँह पर उसे ’ठगों का प्रिंस’ कहने लगे थे. सिर्फ मारूस्या में एक अजीब परिवर्तन आया था, सबसे खराब बात अब उसके भाई के प्रति सारे भ्रम टूट चुके थे- एक पतित और नकारा आदमी! सिर्फ वह डॉक्टर तोपोर्कोव के बारे में सोचती थी, बाकी सब भूल चुके थे. लेकिन तभी संयोग से एक घटना घटी.
पवित्र क्रिसमस के दूसरे दिन प्रिंसेज के हॉल की घंटी बजी. और एक मैले-कुचैले कपड़े पहिने एक नाटी बुढ़िया अंदर आई और प्रिंसेज के ड्राइंग रूम में जा धमकी.
“कैसी हो प्रिंसेज, मेरी उपकर्ता?” उसने पूछा.
“कौन? मुझसे क्या काम है?” प्रिंसेज ने कौतूहल से पूछा.
“मुझे पहिचाना नहीं मेरी सखी. क्या प्रोखोरोव्ना को भूल गई, जिसने प्रिंस इगोर की जचकी कराई थी?”
“मुझसे क्या काम है?”
बूढ़ी आराम से कुर्सी पर बैठ गई. और एक लंबी भूमिका के बाद बोली, “तुम्हारे पास बेचने को ’माल’ है और मेरे पास खरीददार है.”
“तो तुम जोड़ी मिलाने वाली बन गई. बधाई. लेकिन मंगेतर कौन है?”
बूढ़ी ने जेब में हाथ डाल कर रूमाल में बंधी एक फोटो निकाली.
“बेहद सुंदर है प्रिंसेज और धनी-मानी.”
प्रिंसेज ने फोटो आँखों के करीब लाकर देखा और पहिचाना डाॅ. तोपोर्कोव. उन्होंने फोटो मारूस्या की ओर बढ़ा दिया, जो पीली पड़ रही थी. मारूस्या के मुँह से एक चीख निकली. और फोटो दबाये ड्राइंग रूम से भाग निकली.
“मुझे डाॅक्टर से ऐसी उम्मीद नहीं थी. वह खुद आ सकता था. मैं अपमानित महसूस कर रही हूँ. उसने हमें क्या समझ रख है. हम व्यापारी नहीं.”
“सुनो प्रिंसेज, वह प्रिंस न सही. लेकिन उसके जोड़ का यहाँ कोई भद्र-पुरुष नहीं. दहेज में साठ हज़ार रूबल मांगता है. क्या कहती हो?”
कृपया डाॅक्टर से कहना हमने अपमानित महसूस किया है. यह व्योहार का विचित्र तरीका है.“
बूढ़ी बिचैलिया गई तो प्रिंसेज सिर पकड़ कर बैठ गई.
”हम इतना कैसे गिर सकते हैं. हमारे पास कैसा प्रस्ताव भेजा है? हमारा कल का गुलाम.“
प्रिंसेज इस पर क्षुब्ध नहीं थी कि कल के गुलाम ने उनकी बेटी का हाथ माँगा है. बल्कि साठ हज़ार रूबल माँगे हैं जो उनके पास नहीं हैं. इस पर.
लेकिन बूढी बिचैलिया ने जितना मारूस्या को प्रभावित किया था, उतना किसी को नहीं. हर्ष और उत्तेजना से उसे तेज बुखार हो आया. तकिये में सिर गड़ा कर वह सोच रही थी-”क्या यह संभव है? लेकिन कितने अपमानजनक ढंग से प्रस्ताव भेजा. जरूर कहीं गलतफहमी है, बिचैलिया बूढ़ी ने उसे गलत समझा.“
उल्लास में डूबी मारूस्या रात भर सुनहरे सपने देखती रही. उसी शाम बूढ़ी बिचैलिया व्यापारियों के घरों में तोपोर्कोव की तस्वीरें बाँट रही थी.
असलियत यह थी कि तोपोर्कोव ने बूढ़ी बिचैलिया को खास कर प्रिंसेज प्रिकलोंस्की के पास नहीं भेजा था. उसे महज साठ हज़ार रूबल चाहिए थे. वह एक कोठी खरीदना चाहता था.
आधी रात गए इगोर मारूस्या के कमरे में आया.
”मैं तुमसे साफ कहता हूँ उससे विवाह कर लो और भूल जाओ कि वह निम्न तबके से है. भले ही हम प्रिंस बने रहें, हमारा खज़ाना खाली है.“
मारूस्या मुस्कुराई.
”सिर्फ एक बात समझ में नहीं आती. बुढ़िया के मार्फत प्रस्ताव क्यों भेजा. और साठ हज़ार रूबल?“
मारूस्या उछल कर उठ बैठी. उसका चेहरा तमतमाया हुआ था.
”बुढ़िया झूठ बोल रही थी. उस जैसा आदमी ऐसी ओछी बात नहीं कह सकता. वह अद्भुत है. लोग उसे समझते नहीं.“
”मेरा भी यही ख्याल है. माँ जार-जार रो रही है. लेकिन उनकी बात मत मानना. अच्छा तो मिसेज डाॅक्टर! हो! हो! हो!” इगोर ने कहा और सीटी बजाता हुआ चला गया.
Û Û
अगले दिन मारूस्या विशेष रूप से सज कर खिड़की पर बैठी, सारे दिन उसका इंतज़ार करती रही. ठीक ग्यारह बजे तोपोर्कोव अपनी शानदार कैरिज में उसके मकान से गुजरा, लेकिन अंदर नहीं आया. नजरें उठा कर खिड़की ओर देखा भी नहीं, जहाँ मारूस्या बालों में गुलाबी रिबन बाँधे बैठी थी.
“असल में उसके पास समय नहीं. अगले रविवार को जरूर आएगा.” मारूस्या ने सोचा.
लेकिन अगले रविवार को वह नहीं आया. यहाँ तक कि पहले दूसरे और तीसरे महीने भी नहीं. कहने की जरूरत नहीं. जबकि मारूस्या हर दिन सज कर खिड़की पर बैठती थी और हज़ार हज़ार दंशों का शिकार थी.
“आह समझी! माँ ने जिस तरह का व्योहार, बिचैलिया से किया उससे उसने अपमानित महसूस किया है. इसमें माँ की गलती है.” उसने निष्कर्ष निकाला.
ईस्टर के एक दिन बाद इगोर उसके कमरे में शरारत भरी मुस्कान के साथ आया और कहा, “तुम्हारे खूबसूरत मंगेतर ने एक व्यापारी की बेटी से विवाह कर लिया. हा! हा! हा!”
इस दुखद समाचार से हमारी हीरोइन पर बहुत खराब प्रभाव पड़ा. वह अवसादग्रस्त रहने लगी. अपने सुनहरे बालों से गुलाबी रिबन निकाल फेंका और जीवन से घृणा करने लगी. लेकिन प्रेम कितना पूर्वाग्रही और अन्यायी होता है. उसने तोपोर्कोव के इस व्यवहार को भी उचित मान लिया. उसने उपन्यासों में पढ़ रखा था कि कभी-कभी निराश प्रेमी , अपनी प्रेमिका को जलाने के लिए भी उस लड़की से विवाह कर लेता है, जिससे उसे बिल्कुल प्रेम नहीं. तोपोर्कोव ने इसी भावना से व्यापारी की बेटी से विवाह किया है. तोपोर्कोव के साथ ही उसके जीवन का लक्ष्य ओझल हो गया. वह हत्बुद्धि और निष्क्रिय हो गई. उसने एक नीरस और कठोर जीवन जीना शुरू कर दिया. और उदासीन हो गई. उस समय भी उदासीन रही जब उसका मकान नीलाम हुआ और उसे एक सस्ते मकान में आना पड़ा. लेकिन यह एक लंबी नींद थी जिसमें एक सपना था- तोपोर्कोव! तभी एक वज्राघात हुआ जिससे इस सपने के भी चिथड़े उड़ गए. तबाही के दुख से माँ बीमार पड़ी और इस, असार संसार को छोड़ कर चली गई. उनकी मृत्यु से मारूस्या को गहरी ठेस लगी. सपने की जगह दुख ने ले ली.
( 3 )


पतझर का मौसम, उतना ही क्रूर, चिपचिपा, कीचड़ भरा, जैसा पिछले वर्ष था. सुबह सुबह का समय था. आसमान में आक्षित बादल मँडरा रहे थे. एक सप्ताह से ऐसा लग रहा था, जैसे सूर्य का अस्तित्व ही न हो. इस समय हमारी हीरोइन कीचड़ में चलती हुई तोपोर्कोव के पास जा रही थी और सोच रही थी-“मैं उसके पास इलाज के लिए जा रही हूँ.” लेकिन पाठक उसका विश्वास न करें.
उसके घर पहुँचने पर मारूस्या ने घंटी बजाई. दरवाजा खुला. और अपने सामने एक रौबीली नर्स को खड़ा पाया.
“क्या डाॅक्टर घर पर हैं?”
“हम आज मरीज नहीं देखते. कल आना.” नर्स ने कहा और सर्द हवा से बचने के लिए किवाड़ बंद कर लिए. घर लौटने पर मारूस्या ने जो दृश्य देखा, उससे और भी परेशान हो गई.
प्रिंस इगोर ड्राइंग रूम में एक सोफा पर तुर्की अंदाज में बैठा हुआ था. उसके बगल में फर्शपर उसकी महिला मित्र कलेरिया इवानोव्ना चित लेटी हुई थी. वे ’नोज़’ खेल रहे थे. विजेता को हारने पर नाक पर दो थप्पड़ मारने और बीस कोपेक लेने का अधिकार था. कलेरिया को रियायत थी कि हारने पर इगोर को बीस कोपेक देने की जगह दो चुंबन दे. कलेरिया इवानोव्ना एक छरहरी और मांसल युवती थी जिसकी भौहें अत्यंत काली और आँखें मछलियों जैसी थीं. वह हर रोज सुबह नौ बजे आती थी, दोपहर और शाम का भोजन करती थी और रात को भरी जेब लेकर लौटती थी. इगोर मारूस्या को विश्वास दिलाता था कि वह बहुत नेक औरत है. लेकिन निकोफोर उसे ’छिनाल कलेरिया’ कहता था, जो बहुत उपयुक्त था. वह बिलियर्ड बनाने वाले की बीवी थी, उसे इगोर की खुले आम बीवी बनने में कोई शर्म नहीं थी.
मारूस्या अपने पिता की पेंशन से खर्च चलाती थी जो अगर इगोर में फिजूलखर्ची की आदत न होती तो घर के लिए पर्याप्त थी. नकारा और बिगड़ा हुआ इगोर यह मानने से इंकार करता था, कि वह गरीब हो चुका है. जो कोई उससे परिस्थितियों के अनुसार चलने को कहता था, तो वह हत्थे से उखड़ जाता था.
“कलेरिया को मछली पसंद नहीं. उसके लिए भुना हुआ चिकिन होना चाहिए. इस तरह से हम उस नेक औरत को मार डालेंगे. आज के भोजन में चिकिन क्यों था?” इगोर कहता.
“क्या प्रिंस के लिए कुछ शराब और बियर है? अगर नही ंतो निकोफोर को भेजो.” कलेरिया उकसाती.
वे यह नहीं देख पाते थे कि मारूस्या की अँगूठियां, घड़ी और गाउन एक के बाद एक गायब होते जा रहे हैं. सेकेन्डहैंड के दुकानदारों को बेचे जा रहे हैं.
अगले दिन मारूस्या फिर तोपोर्कोव के घर पहुँची. नर्स ने कहा, ”आप तो जानती होंगी मिस, डाॅक्टर की फीस पाँच रूबल है. एक कोपेक कम नहीं.“
मारूस्या का दिल डूबने लगा. उसके पास सिर्फ तीन रूबल थे. लेकिन इतने के लिए, वह उसे बाहर नहीं निकाल देगा.
मारूस्या का नंबर सबसे बाद में आया. जैसे ही वह डाॅक्टर के फ्रेंच और जर्मन शीर्षकों वाली किताबों से सजे भव्य चेंबर में पहुँची, ठंडे पानी से भीगी हुई मुर्गी की तरह काँपी. डाॅक्टर डेस्क पर हाथ टेक कर खड़ा था. डाॅक्टर ने उसे संकेत से कुर्सी पर बैठने को कहा और सवालिया नज़रों से देखा.
”हाँ...?“
”मुझे तेज़ जुकाम है.“
”और बुखार?“
”नहीं.“
”मैने पहले तुम्हारा इलाज किया तब क्या कहा था?“
”फेफड़ों में सूजन.“
”हाँ याद आया. प्रिंसेज प्रिकलोंस्की. नहीं?“
”हाँ. उस समय मेरा भाई भी बीमार था.“
तोपोर्कोव ने जल्दी से दवा का पर्चा लिखा.
”सोने से पहले ये पाउडर लो, और सर्दी से बचो.“
”कितना सुंदर!...“ मारूस्या ने सोचा, तीन रूबल का नोट दिया और बाहर निकल आई. घर पहुँचने पर मारूस्या अपने से बहुत क्षुब्ध थी-”मैंने उसे बिचैलिया वाली गलतफहमी का स्पष्टीकरण क्यों नहीं दिया?“ तभी इगोर कमरे में आया और चहलकदमी करने लगा.
”तुमसे एक बहुत बढ़िया बात कहनी है. कलेरिया इवानोव्ना हमारे साथ रहने को तैयार है.“
”क्या?... असंभव!“
”असंभव क्यों. घर चलाने में तुम्हारी मदद करेगी. कोने वाले कमरे में रहेगी.“
”उस कमरे में माँ की मौत हुई थी. असंभव!“ मारूस्या के शरीर में कंपकंपी दौड़ गई. ”मैं उसे पसंद नहीं करती.“
”लेकिन मैं उसे पसंद करता हूँ.“
”मैं मर जाऊंगी. प्यारे जार्ज नहीं... नहीं.“ मारूस्या के आँसू फूट पड़े.
उसी शाम कलेरिया उनके घर आ गई.
”तुम मुझे पसंद क्यों नहीं करती?“ उसने मारूस्या को छाती से लगाते हुए पूछा.
”इसकी उसे बड़ी कीमत चुकानी पड़ी.“
”तुम धनी होने का ढोंग क्या करती हो?“ वह हर शाम डिनर के समय मारूस्या से पूछती थी. ”आखिर तुम्हारे भाई में ऐसा क्या है, जो उसके साथ रहने आती.“ और हँसती. इगोर उससे इतना दबा हुआ था कि कुछ न कहता. जब कि कलेरिया की हँसी मारूस्या के जीवन में जहर घोल रही थी.
इगोर का अराजक जीवन अपने चरम पर था. चूंकि पिता की पेंशन उसकी ऐयाशियों के लिए काफी नहीं थी अतः उसने खुद ’कमाना’ शुरू कर दिया. उसने परिचितों, रिश्तेदारों से उधार लेना शुरू कर दिया. जुआ में ठगी करने लगा. मारूस्या का सामान चुराने लगा. उसे लोग उसके मुँह पर ’ठगों का प्रिंस’ कहने लगे. उस पर हर कोई हँसता था, लेकिन उसे कोई शर्म नहीं थी.
Û Û
”मेरे कपड़े मत देखो.“ मारूस्या कह रही थी.
कलेरिया का गुस्सा सातवें आसमान पर था.
इसके बाद इगोर उसे हफ्ते भर डाँटता और कोसता रहा. ऐसा जीवन लंबा नहीं होता. इसके साथ ही हमारी कहानी का अंत होता है.
वसंत के दिन लंबे होने लगे. खेतों और जंगलों से ताज़गी भरी हवा आने लगी. ऐसे ही एक दिन निकोफोर मारूस्या के पास बैठा हुआ था. इगोर कलेरिया घर पर नहीं थे. निकोफोर उसे उसके पिता के किस्से सुना रहा था- वे कैसे कपड़े पहिनते थे, कैसे शिकार करते थे, कैसे घुड़सवार थे.
”मेरा शरीर तप रहा है..प्यारे निकोफोर क्या तुम मुझे पाँच रूबल उधार दोगे?“ मारूस्या ने कहा.
”जरूर दूंगा मिस. हालांकि मेरे पास सिर्फ पाँच रूबल हैं. देखूंगा ईश्वर क्या भेजता है.“
”आखिरी बार. मैं वापिस कर दूंगी.“
अगले दिन मारूस्या ने अपनी सबसे सुंदर ड्रेस पहिनी. सुनहरे बालों में गुलाबी रिबन बाँधा. और घर छोड़ने से पहले, दस बार अपने को दर्पण में देखा. वेटिंग रूम में नई नर्स ने उसका स्वागत किया.
वेटिंग रूम में आम दिनों से ज्यादा मरीज थे. मारूस्या को सबसे बाद में बुलाया गया. दिन भर बिना चाय पिए, लंबे इंतजार से थकी, मारूस्या जैसे तैसे डाॅक्टर के सामने पहुँची. उसका दिमाग सुन्न था, मुँह सूखा हुआ. आँखें धुंध भरी.
”क्या समारा गई थी. मैने कहा था?“ डाॅक्टर ने पूछा.
”नहीं.“
”ठंड से बचो. अपथ्य मत खाओ. अच्छा.“ डाॅक्टर ने उसके फेफड़ों की जाँच करने के बाद कहा.
लेकिन मारूस्या अपनी जगह से नहीं हिली. वह कलेरिया के पास लौटने से भयभीत थी.
”अब जा सकती हो.“
अगर डाॅक्टर मनोविज्ञानी होता तो उसकी आँखों से पढ़ लेता-”मुझे मत भगाओ.“
मारूस्या की आँखों से बड़े-बड़े आँसू बह निकले. हाथ कुर्सी के हत्थों पर लटक गए.
”मैं तुमसे प्रेम करती हूँ डाॅक्टर.“ उसने फुसफुसा कर कहा.
उसके गालों पर लाली दौड़ गई. एक लंबे अंतद्र्वंद्व का विस्फोट. उसका चेहरा लटकने लगा. डाॅक्टर अपने धंधे में पहली बार शर्माया. उसका चेहरा उस बच्चे की तरह हो गया जिसकी पिटाई होना हो. उसने ऐसे और इस तरह बोले गए शब्द, किसी लड़की से आज तक नहीं सुने थे. क्या उसके कान उसे धोखा दे रहे हैं? उसका दिल तेजी से धड़कने लगा.
”लिकोलाई!...“ बगल के कमरे का दरवाजा आधा खुला. और व्यापारी की बेटी (उसकी बीवी) का गुलाबी चेहरा अंदर झाँका. डाॅक्टर ने इसका फायदा उठाया और तुरंत चेंबर के बाहर हो गया.
दस मिनिट बाद लौटा तो मारूस्या कोच पर पीठ के बल लेटी हुई सीलिंग की ओर देख रही थी. एक हाथ और बालों की लट नीचे लटक रही थी. वह अचेत थी. घबराया डाॅक्टर हवा के लिए उसके वस्त्र खोलने लगा, और बिना जाने कि क्या कर रहा है, उन्हें फटकारने लगा. और सहसा उसकी तस्वीर और कुछ विजिटिंग कार्ड जेब से कोच पर फैल गए. घबराए डाॅक्टर ने पानी से मारूस्या का चेहरा धोया.
”मैं कहाँ हूँ?“ होश में लौटती और धीरे धीरे आँखें खोलती हुई मारूस्या ने पूछा. फिर डाॅक्टर को पहचान कर फुसफुसाई, ”मै। तुमसे प्रेम करती हूँ डाॅक्टर!“ उसकी मनुहार और प्रेम भरी आँखें एकटक डाॅक्टर के चेहरे पर टिकी थीं.
”मैं तुम्हारे लिए क्या कर सकता हूँ?“ डाॅक्टर ने अत्यंत मृदु स्वर में पूछा.
सहसा मारूस्या का कोहनी पर टिका सिर हथेली से फिसला और कोच में धंस गया. लेकिन आँखें अब भी डाॅक्टर के चेहरे पर टिकी थीं.
डाॅक्टर का दिल धड़क रहा था, धंुध भरे दिमाग में कुछ अपरिचित अनहोना-सा घटित हो रहा था. मारूस्या की करुण आँखों ने उसके अतीत की स्मृतियों को जगा दिया था.
Û Û
उसे बचपन याद आया जब वह अपने मालिक प्रिंस इगोर प्रिकलोंस्की के जूठे बर्तन धोया करता था, डाँट खाता था और पिटता था. डिवीनिटी स्कूल और सेमीनरी, जहाँ से अपने मालिक की आज्ञा के विरुद्ध भाग कर यूनीवर्सिटी जा पहुँचा था. फटे जूतों और तार-तार हुए कपड़ों में. जेब में बिना एक कोपेक के. यूनीवर्सिटी में भूख और शीत की मार सहते हुए पढ़ना पड़ता था- एक मुश्किल काम.
अंततः वह सफल हुआ. बेहिसाब पसीना बहा कर सोसाइटी में अपने लिए सम्मानित जगह बनाई. और अब समृद्धि और यश के शिखर पर था. अपने काम में दक्ष और रात-दिन मेहनत करता था.
तोपोर्कोव ने डेस्क पर फैले पाँच और दस के रूबलों के ढेर को देखा. उसे उन महिलाओं का ख्याल आया, जिनसे इन्हें लिया था और पहली बार अपने पर शर्मिंदा हुआ. क्या उसने इतनी कठिन यात्रा सिर्फ उन महिलाओं और उनके रूबलों के लिए की थी...? वही रूबल अब उसे मुँह चिढ़ाते लग रहे थे. और इन यादों के साथ ही उसका सफलता का दर्प गायब हो गया, आकृति सिकुड़ गई. चेहरे पर झुर्रियां उभर आईं.
”मैं तुम्हारे लिए क्या कर सकता हूँ?“ मारूस्या की आँखों में देखते हुए उसने दोहराया और शर्म महसूस हुई जैसे मारूस्या की आँखें उससे पूछ रही हों- तुमने अपनी प्रैक्टिस से क्या अर्जित किया...पाँच और दस के रूबलों का ढेर?... इनके पीछे मैने अपनी मानसिक शांति, आध्यात्म और जीवन गवां दिया. और उससे मुझे क्या मिला, ये राजसी कोठी, ये शानदार कैलिश, घोड़े और हर चीज जिसे सुविधा और वैभव कहा जाता है.... लेकिन सोचो तो सब व्यर्थ, व्यर्थ, व्यर्थ!...
तोपोर्कोव ने बढ़ कर मारूस्या की देह को बाहों में उठा लिया...”यहाँ मत लेटो. कोच गंदा है.“
और जैसे इसकी कृतज्ञता में मारूस्या के बालों की एक सुनहरी लट और गुलाबी रिबन तोपोर्कोव की छाती पर आ गिरे, मारूस्या की आँखें दीप्त हो उठीं. और कैसी आँखें. मारूस्या उसे क्षमा कर देना चाहती थी.
”मुझे थोड़ी चाय दो...“ हल्के अंतराल के बाद मारूस्या फुसफुसाई.
अगले दिन तोपोर्कोव मारूस्या के साथ ट्रेन के पहले दर्जे के कंपार्टमेंट में बैठा हुआ समारा (दक्षिणी फ्रांस) जा रहा था. जहाँ की जलवायु ऐसे रोगियों के अनुकूल होती है.- एक बौराया हुआ आदमी!... वह जानता था कि मारूस्या बचेगी नहीं, फिर भी वह उसे हर कीमत पर बचा कर कोई प्रायश्चित कर लेना चाहता था. जिन रूबलों को जतन से बचाता रहा था, उन्हें पानी की तरह बहा रहा था. उसके लिए अपना सर्वस्व गंवाने के लिए तत्पर था.
कभी उनके लिए भी सूर्य उगा था. लेकिन अब देर हो चुकी थी. पतझर में फूल नहीं फूलते...समारा पहुँचने के तीन दिन बाद दुखिया प्रिंसेज मारूस्या की मृत्यु हो गई.
फ्रांस से लौटने पर डाॅक्टर तोपोर्कोव का जीवन पुरानी लीक पर चल पड़ा. अब वह महिलाओं से रूबल के नोट तो लेता है, उनसे बात करते समय खिड़की से शून्य में देखता रहता है. भय महसूस करता है.
प्रिंसेज मारूस्या का परम लंपट भाई अभी जीवित है. उसने कलेरिया को छोड़ दिया है और तोपोर्कोव के बुलावे पर उसके साथ रहने लगा है. सचमुच के प्रिंस की तरह रहता है. तोपोर्कोव ने अपने खज़ाने का मुँह उसके लिए खोल दिया है.
तोपोर्कोव उसे बहुत पसंद करता है. उसकी ठुड्डी, उसे मारूस्या की याद दिलाती है.
० ० ०
अनुवाद: वल्लभ सिद्धार्थ


 


परिचय




वल्लभ सिद्धार्थ
जन्म: 1 अप्रैल 1937 को मऊरानीपुर (झाँसी) में।
शिक्षा: इलाहाबाद विश्वविद्यालय से दर्शनशात्र में एम0 ए0।
प्रकाशन: 1965 से 1995 तक सभी स्तरीय पत्रिकाओं में लगभग 150 कहानियाँ प्रकाशित. सभी प्रादेशिक भाषाओं, अँगे्रजी व जापानी में कहानियों के अनुवाद. 1996 से विश्व के क्लासिक का हिंदी अनुवाद.
कहानी संग्रह: महापुरुषों की वापसी, शेष प्रसंग, नित्य प्रलय, ब्लैक आउट, दूसरे किनारे पर, वल्लभ सिद्धार्थ की पारिवारिक कहानियाँ।
उपन्यास: कठघरे।
विविध: महाभारत के पात्रों का अंतर्मन, ताकि सनद रहे (ऐतिहासिक संस्मरण) तथा संवाद अनायास (साहित्यिक विमर्श)।
क्लासिक अनुदित पुस्तकें: तीन महान ग्रीक त्रासिदियाँ (नाटक), काफ्का से संवाद, दण्डदीप में (काफ्का की तीन लंबी कहानियाँ), जलपरी (पुश्किन का नाटक), पुश्किन की जीवनी (हेनरी त्रोएत), कप्तान की बेटी (पुश्किन का उपन्यास), दोस्तोएवस्की की जीवनी (हेनरी त्रोएत), हमशक्ल, एक हिमपात की कहानी (दोस्तोएवस्की के उपन्यास), युद्ध और शान्ति (तालस्तोय), अन्ना केरीनिना (तोलस्तोय), मृतात्माएँ (गोगोल), गोदो का इन्तजार (नोबेल प्राइज प्राप्त सेम्युअल बैकेट का नाटक), मक्खियाँ (ज्याँ पाल सात्र्र का नोबेल प्राइज घोषित नाटक, जिसे महान सात्र्र ने अपने विश्वासों के कारण अस्वीकार कर दिया.), आत्मा और कँटीले तारों का घेरा (अलेक्जंडर सोल्ज़ेनिस्तिन), इलियाड (ग्रीक, होमर), डिवाइन कामेडी (इैलियन, दाँते), नवजीवन (दाँते), दाँते की जीविनी (वाकेसियो), द एडल्ट (रूसी, दोस्तोएवस्की), प्रेत (इव्सन), चेखव की श्रेष्ठ कहानियाँ आदि।
अनुदित पुस्तकें शीघ्र प्रकाश्य: अमेडी (एब्सर्ड नाटक, आयोनेस्का)े, आला अफसर (नाटक, गोगोल), न भूतो न भविष्यति (सोल्झेनित्सिन), द ब्रदर्स (दोस्तोएवस्की), द आउटसाइडर (अल्बर्ट कामू)।



 
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