बुन्देलखण्ड की समृद्धि एवं महिलाओं के सशक्तीकरण हेतु डेयरी परियोजना संचालित की जायेगी

बुन्देल खण्ड की महिलाओं को सशक्तीकरण एवं आर्थिक रूप से आत्म निर्भन
बनाने के लिए डेयरी परियोजना संचालित की जायेगी। उत्तर प्रदेश राज्य
ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत इसके लिए सर्वप्रथम 5 जनपदों-बांदा,
हमीरपुर, जालौन, चित्रकूट एवं झांसी के 600 गांवों को पायलट प्रोजेक्ट के
रूप में चयनित किया जायेगा। इस डेयरी परियोजना पर आगमी तीन वर्षों तक
43.58 करोड़ की धनराशि व्यय की जायेगी। जिसमें 26.15 करोड़ भारत सरकार तथा
17.43 करोड़ रुपये राज्य सरकार व्यय करेगी।
        यह जानकारी प्रदेश के ग्राम्य विकास राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) एवं
चिकित्सा स्वास्थ्य राज्यमंत्री डा. महेन्द्र सिंह ने आज विधान भवन में
प्रेस प्रतिनिधियों को संबोधित करते हुए दी। उन्होंने कहा कि बुन्देलखण्ड
कुछ मामलों में पिछड़ा हुआ है। मौजूदा सरकार के लगभग सवा साल के कार्यकाल
के दौरान केन्द्र तथा राज्य सरकार के सहयोग से कई बड़ी परियोजनाएं संचालित
कर बुन्देलखण्ड को तेजी से विकास के पथ पर अग्रसर करने का प्रयास किया
गया है।
        उन्होंने केन-बेतवा लिंक परियोजना का जिक्र करते हुए कहा कि लम्बे समय
से अटकी हुई इस परियोजना को भारत सरकार ने अनुमोदित कर इस क्षेत्र को
समृद्ध बनाने का प्रयास किया है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री योगी
आदित्यनाथ जी ने अपनी पहली मण्डलीय समीक्षा बैठक झांसी आयोजित कर
बुन्देलखण्ड के विकास को अपनी प्राथमिकता बताया था और इस दिशा में पेयजल
से लेकर आर्थिक समृद्धि से संबंधित विभिन्न योजनाएं संचालित की जा रही
हैं।
        डा. महेन्द्र सिंह ने कहा कि राज्य सरकार बुन्देलखण्ड को आत्मनिर्भर
बनाकर रोजगार के साथ ही यहां के वासियों को विकास से जोड़ना चाहती है।
इसीलिए डिफेन्स कारिडोर की स्थापना को प्राथमिकता दी गई है। इसके साथ ही
बुन्देलखण्ड को दिल्ली से जोड़ने के लिए बुन्देलखण्ड एक्सप्रेसवे के
निर्माण की घोषणा की गई है। यह दोनों परियोजनाएं विकास के क्षेत्र में
मील का पत्थर साबित होंगी। राज्य सरकार ने पेयजल के संकट से जूझ रहे इस
क्षेत्र की इस समस्या का लगभग समाधान कर दिया है।
        इसी कड़ी में बुन्देलखण्ड की महिला जनशक्ति को आत्मनिर्भर बनाने के लिए
डेयरी परियोजना की शुरूआत होने जा रही है। यह परियोजना बुन्देलखण्ड में
गठित महिला स्वयं सहायता समूहों के लिए दुग्ध क्रान्ति की नयी पहल साबित
होगी। सही मायने में कहा जाय तो यह परियोजना बुन्देलखण्ड के आर्थिक
समृद्धि के लिए उत्तर प्रदेश सरकार एवं केन्द्र सरकार की ओर से एक तोहफा
है।
        ग्रामीण आजीविका मिशन की इस डेयरी परियोजना हेतु पांच जनपदों के 37
विकास खण्डों के 1146 ग्राम पंचायतों के 1340 गांवों में कुल 11650 स्वयं
सहायता समूहों का गठन करते हुए 128150 ग्रामीण क्षेत्र की गरीब परिवारों
की महिलाओं को स्वयं सहायता समूहों में जोड़ा जा चुका है। बुन्देलखण्ड
क्षेत्र के 7 जनपदों में दुग्ध उत्पादन पर राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड
द्वारा कराये गये सर्वे के अनुसार प्रतिदिन लगभग 43 लाख लीटर दूध का
उत्पादन होता है, जिसमें से मात्र 7930 लीटर दूध का विपणन दुग्ध उत्पादक
सहकारी समितियों के माध्यम से किया जाता है। जबकि शेष दूध असंगठित
क्षेत्र में विपणन किया जाता है।
        डा. महेन्द्र सिंह ने इस डेयरी परियोजना के बारे में बताया कि इसके
अन्तर्गत आगामी तीन वर्षों में पांच जनपदों के 600 गांवों में 3600 स्वयं
सहायता समूहों की महिलाओं को दुग्ध उत्पादक कम्पनी में जोड़ा जायेगा। इसके
अन्तर्गत पहले साल 5000 सदस्यों को दुग्ध उत्पादक कम्पनी से जोड़ा जायेगा
एवं पांच वर्ष तक 48000 समूह सदस्यों को दुग्ध उत्पादक कम्पनी से जोड़ा
जाना प्रस्तावित है।
        परियोजना के तहत दुग्ध उत्पादक कम्पनी पहले वर्ष लगभग 10300 लीटर दूध का
प्रतिदिन व्यापार करेगी एवं पांचवे वर्ष तक 1.5 लाख लीटर दूध का विपणन
प्रतिदिन किया जायेगा, जिससे समूह की प्रत्येक महिला की सालाना आमदनी
पहले साल 10740 रुपये होने का अनुमान है। इस प्रकार पांच वर्षों में यह
आय प्रति सदस्य 40476 रुपये तक होने का अनुमान है।
        ग्राम्य विकास मंत्री ने इस परियोजना के दूसरे लाभों के बारे में
जानकारी देते हुए बताया कि इससे गो एवं पशु संवर्द्धन के साथ ही मलमूत्र
एवं गोबर से जैविक खेती को बढ़ावा मिलेगा। शुद्ध पेयजल की व्यवस्था के साथ
ही चारा उत्पादन की भी व्यवस्था होगी। भविष्य में इसकी लागत राज्य सरकार
द्वारा वहन किया जायेगा। इसके अलावा इस क्षेत्र की आर्थिक समृद्धि बढ़ेगी,
इसके लिए भारत सरकार सहयोग करेगी और अन्ना प्रथा भी समाप्त होगी।
        आजीविका मिशन निदेशक एवं विशेष सचिव ग्राम्य विकास श्री नागेन्द्र
प्रसाद सिंह ने बताया कि समूह से समृद्धि की ओर के संकल्प को पूरा करने
के लिए इस परियोजना में 80 प्रतिशत महिलाएं आर्थिक एवं सामाजिक दृष्टि से
पिछड़े पृष्ठभूमि से संबंधित होंगी। इस दुग्ध उत्पादक कम्पनी को तीन वर्ष
के बाद महिलाएं संचालित करेंगी, जो महिला सशक्तीकरण की दिशा में एक मजबूत
पहल होगी।